शनिवार, 25 जुलाई 2009

पुकार










सुबह-सवेरे उठना पड़ता,

फिर रहती है भागमभाग।

थके हुए स्कूल से लौटें,

तब चले ‘होमवर्क’ का राग।


जितना दिन भर पढ़ें स्कूल में,

उससे ज्यादा होमवर्क।

बच्चे कितने दुखी हैं होते,

इससे टीचर को नहीं फर्क।


बच्चे हैं हम, थक जाते हैं,

उठा के भारी बस्ता।

टीचर जी के डंडे का डर,

कर देता हालत खस्ता।


सोम-मंगल तो ठीक से बीतें,

बुध, वीर परेशानी।

शुक्र, शनि की बात न पूछो,

याद आती है नानी।


करनी होती दूर थकावट,

छ: दिन न तड़पाया करो।

‘रविवार’ बच्चों के प्यारे,

दो-तीन दिन में आया करो।

*****

11 टिप्‍पणियां:

निर्मला कपिला ने कहा…

बहुत सुन्दर बाल कविता के लिये बधाई

Unknown ने कहा…

बच्चों की मनोस्थिति को दर्शाती सुंदर कविता, बधाई।

ओम आर्य ने कहा…

bahut hi sundar

अनिल कान्त ने कहा…

बहुत बहुत बहुत सुन्दर कविता...वाकई बस्ते का बोझ तो बहुत होता है :)

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

हेमन्त कुमार ने कहा…

बाल मनुहार की कविता के लिए घन्यवाद।

Unknown ने कहा…

वास्तव में ही बहुत प्यारी कविता है।

Unknown ने कहा…

Bahut hi sunder kavita hai

सहज साहित्य ने कहा…

बते का बोझ तो थकाता ही है ;परन्तु उससे ज़्यादा थकानेवाली है छह दिन की पढ़ाई ।थकान दूर करने के लिए एक और इतवार होने से अच्छा रहेगा ।बच्चों की यह पुकार ज़रूर सुनी जाए ।

Murari Pareek ने कहा…

यार वो भागम भाग वो मास्टरजी के डंडे सब कबूल है मुझे मेरा बचपन दे दो | सब कुछ सह लूंगा अपने बचपन की याद दिलादी !!अच्छी रचना !

Best English Tutor ने कहा…

manmohak balgeet hai.....

Unknown ने कहा…

स्कून पढ़ने वाले बच्चों की स्थिति को बहुत अच्छी तरह समझा है आपने।