गुरुवार, 9 जुलाई 2009

स्वर्ग का चाचा










बहुत पहले की बात है। धरती पर दो वर्षों तक बिल्कुल वर्षा नहीं हुई। अकाल पड़ गया।
अपने तालाब को सूखता देख कर मेंढ़क को चिंता हुई। उसने सोचा, अगर ऐसा रहा तो वह भूखा मर जाएगा। उसने सोचा कि इस अकाल के बारे स्वर्ग में जाकर वहाँ के राजा को बताया जाए।
साहस कर मेंढ़क अकेला ही स्वर्ग की ओर चल पड़ा। राह में उसे मधुमक्खियों का एक झुण्ड मिला। मक्खियों के पूछने पर उसने बताया कि भूखे मरने से अच्छा है कि कुछ किया जाए। मक्खियों का हाल भी अच्छा नहीं था। जब फूल ही नहीं रहे तो उन्हें शहद कहाँ से मिलता। वे भी मेंढ़क के साथ चल दीं।
आगे जाने पर उन्हें एक मुर्गा मिला। मुर्गा बहुत उदास था। जब फसल ही नहीं हुई तो उसे दाने कहाँ से मिलते। उसे खाने को कीड़े भी नहीं मिल रहे थे। इसलिए मुर्गा भी उनके साथ चल दिया।
अभी वे सब थोड़ा ही आगे गये थे कि एक खूँखार शेर मिल गया। वह भी बहुत दुखी था। उसे खाने को जानवर नहीं मिल रहे थे। उनकी बातें सुन कर शेर भी उनके साथ हो लिया।
कई दिनों तक चलने के बाद वे स्वर्ग में पहुँचे। मेंढ़क ने अपने सभी साथियों को राजा के महल के बाहर ही रुकने को कहा। उसने कहा कि पहले वह भीतर जाकर देख आए कि राजा कहाँ है।
मेंढ़क उछलता हुआ महल के भीतर चला गया। कई कमरों में से होता हुआ वह राजा तक पहुँच ही गया। राजा अपने कमरे में बैठा परियों के साथ खेल रहा था। मेंढ़क को क्रोध आ गया। उसने लंबी छलांग लगाई और उनके बीच पहुँच गया। परियाँ एकदम चुप कर गईं। राजा ने एक छोटे से मेंढ़क की करतूत देख गुस्सा आ गया।
“पागल जीव! तुमने हमारे बीच आने का साहस कैसे किया?” राजा चिल्लाया। परंतु मेंढ़क बिल्कुल नहीं डरा। उसे तो धरती पर भी भूख से मरना था। जब मौत साफ दिखाई दे तो हर कोई निडर हो जाता है।
राजा फिर चीखा। पहरेदार भागे आए ताकि मेंढ़क को पकड़ कर महल से बाहर निकाल दें। मगर इधर-उधर उछलता मेंढ़क उनकी पकड़ में नहीं आ रहा था। मेंढ़क ने मधुमक्खियों को आवाज दी। वे सब भी अंदर आ गईं। वे सब पहरेदारों के चेहरों पर डँक मारने लगीं। उनसे बचने के लिए सभी पहरेदार भाग गए।
राजा हैरान था। तब उसने तूफान के देवता को बुलाया। पर मुर्गे ने शोर मचाया और पंख फड़फड़ा कर उसे भी भगा दिया। तब राजा ने अपने कुत्तों को बुलाया। उनके लिए भूखा खूँखार शेर पहले से ही तैयार बैठा था।
अब राजा ने डर कर मेंढ़क की ओर देखा। मेंढ़क ने कहा, “महाराज! हम तो आपके पास प्रार्थना करने आए थे। धरती पर अकाल पड़ा हुआ है। हमें वर्षा चाहिए।”
राजा ने उससे पीछा छुड़ाने के लिए कहा, “अच्छा चाचा! वर्षा को भेज देता हूँ।”
जब वे सब साथी धरती पर वापस आए तो वर्षा भी उनके साथ थी। इसलिए वियतनाम में मेंढ़क को ‘स्वर्ग का चाचा’ कह कर पुकारा जाता है। लोगों को जब मेंढ़क की आवाज सुनाई देती है वे कहते हैं, “चाचा आ गया तो वर्षा भी आती होगी।”
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3 टिप्‍पणियां:

शरद कोकास ने कहा…

बच्चों को कब तक हम स्वर्ग नर्क की झूठी कहानियाँ सुनाते रहेंगे ?

Udan Tashtari ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Unknown ने कहा…

achha laga !
badhaai !