बात सन् 1912 की है। स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में ओलम्पिक खेल हो रहे थे। मैराथन दौड़ के दौरान जापान का एक धावक शिजो कनाकुनी अचानक गायब हो गया। अंतिम बार उसे स्टॉकहोम से कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक रिफ्रैशमैंट स्टाल पर देखा गया था। उसके बाद उसे किसी ने नहीं देखा।
सन् 1963 में एक स्वीडिश पत्रकार ने उस धावक को जापान में देख लिया। पूछने पर कनाकुनी ने बताया कि वह बहुत थक गया था। उस रिफ्रैशमैंट स्टाल पर उसने कोल्ड ड्रिंक पिया, लेकिन उससे उसकी थकान कम नहीं हुई। उसे लगा कि उसे घर चले जाना चाहिए। उसी समय वहाँ से एक ट्रॉम गुजरी। वह ट्रॉम में चढ़ कर राजधानी पहुँच गया। बाद में एक बोट से वह जापान पहुँच गया। लोग उसकी हँसी उड़ायेंगे, यह सोचकर उसने किसी को कुछ नहीं बताया।
उस पत्रकार ने कनाकुनी को सुझाव दिया कि उसने जिस स्थान से मैराथन दौड़ छोड़ी थी, उसी स्थान से दोबारा दौड़ कर अपनी मैराथन दौड़ पूरी कर ले। कनाकुनी ने उसकी बात मान ली। इस तरह लगभग सत्तर वर्ष की उम्र में उसने मैराथन दौड़ पूरी की।
इस तरह 1912 में शुरू कर 1963 में पूरी हुई दौड़, पचास वर्ष से भी अधिक समय में।
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