गुरुवार, 29 जुलाई 2010

मीठा बोलो


श्याम सुन्दर अग्रवाल




काले रंग का कौवा होता,

काली ही कोयल होती ।

कोयल का सम्मान करें सब,

कौवे की दुर्गति होती ।



रंग से कुछ फर्क न पड़ता,

पड़े गुणों का मोल ।

कौवे की कर्कश काँव-काँव,

कोयल के मीठे बोल ।


प्यार अगर पाना है बच्चो,

मिश्री-सा मीठा बोलो,

मधुर आवाज निकालो मुख से,

कानों में रस घोलो ।

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रविवार, 18 जुलाई 2010

पत्थर की पुस्तक



बच्चो, तुम्हारी सभी पुस्तकें कागज से बनी हुई होंगी। तुम सोचते होगे कि पुस्तकें केवल कागज से ही बनी होती हैं। मगर ऐसा नहीं है। पहले लोग वृक्षों के चौड़े पत्तों, लकड़ी के फट्टों तथा पत्थर पर भी लिखते थे। म्यांमार देश में पत्थर से बनी एक विशाल पुस्तक है। जानते हो कि यह पुस्तक किस पत्थर से बनी है? यह बनी है संगमरमर से। माली भाषा में लिखी इस पुस्त में कुल 1460 पृष्ठ हैं। प्रत्येक पृष्ठ की लम्बाई 5 फुट, चौड़ाई 3.5 फुट तथा मोटाई आधा फुट है। इस पुस्तक की कुल लम्बई 1.6 किलोमीटर तथा कुल वजन 726 टन है। यह दुनिया की सबसे बड़ी पुस्तक कहलाती है।






यह पुस्तक मांडले पहाडियों की घाटी में बने एक पैगोडा के मैदान में स्तूपों के रूप में खड़ी है। इसके पन्नों के प्रत्येक सैट पर छत बनी है।

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रविवार, 11 जुलाई 2010

मनुष्य कितनी गर्मी सहन कर सकता है?



मनुष्य
कितनी गर्मी सह सकता है? इस प्रश्न का उत्तर भिन्न-भिन्न देशों व क्षेत्रों के लोगों के लिए अलग-अलग हो सकता है। भारत व दक्षिणी देशों के लोग जितनी गर्मी सह सकते हैं, वह ठंडे देशों के लोगों के लिए असहनीय हो सकती है। भारत में ही कई स्थानों पर तापमान 46-47 डिग्री-सेलसियस तक पहुँच जाता है। मध्य आस्ट्रेलिया का तापमान तो कई बार 50 डिग्री से. से भी अधिक हो जाता है। धरती पर सब से अधिक तापमान 57 डिग्री से. रिकार्ड किया गया है। इतना तापमान कैलिफोर्निया की ‘मौत की घाटी’ में होता है।
कुछ भौतिक वैज्ञानिकों ने ऐसे प्रयोग भी किए हैं कि मनुष्य का शरीर अधिकतम कितना तापमान सहन कर सकता है। पता लगा है कि नमी रहित हवा में शरीर को धीरे-धीरे गरम किया जाए तो यह पानी के उबाल-बिंदु (100 डिग्री से.) से कहीं अधिक 160 डिग्री से. तक का तापमान सहन कर सकता है। ऐसा ब्लैकडेन तथा चेंटरी नाम के दो अंग्रेज वैज्ञानिकों ने प्रयोग द्वारा कर के दिखाया। इस प्रयोग के लिए वे ब्रेड (डब्लरोटी) बनाने वाली एक बेकरी में भट्टी बाल कर कई घंटे वहाँ व्यतीत करते थे। उस कमरे की हवा इतनी गर्म थी कि उसमें अंडा उबाला जा सकता था और कबाब भूना जा सकता था। परंतु काम करने वाले आदमियों को वहाँ कुछ नहीँ होता था।
मनुष्य के शरीर की इस सहनशीलता का राज क्या है? असल में हमारा शरीर इस तापमान का एक अंश भी ग्रहण नहीँ करता। शरीर अपना साधारण तापमान सुरक्षित रखता है। इस गर्मी के विरुद्ध उसका हथियार है– पसीना।पसीने का वाष्पीकरण हवा की उस परत का ताप हज़म कर जाता है, जो हमारी चमड़ी के सम्पर्क में आती है।इसलिए ही उस हवा का तापमान सहने योग्य स्तर तक कम हो जाता है। इसके लिए दो शर्तें है। एक तो शरीर गर्मी के स्रोत के सीधे सम्पर्क में न आए तथा दूसरा हवा पूरी तरह खुश्क हो।
हवा की नमी हमारे शरीर की गर्मी सहन करने की क्षमता पर गहरा प्रभाव डालती है। हम मई-जून के दौरान 42-43 डिग्री-से. के तापमान पर उतना असहज महसूस नहीं करते, जितना जुलाई-अगस्त में इससे कहीं कम तापमान में करते हैं। मई-जून में हवा खुश्क होती है व पसीने का वाष्पीकरण तेजी से होता है। जुलाई-अगस्त में हवा में बहुत अधिक नमी होती है, जिससे वाष्पीकरण की गति बहुत धीमी हो जाती है।
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