शनिवार, 19 दिसंबर 2009

गिलहरी का दोस्त जिराफ













नन्हीं गिलहरी को मिला,
बहुत अच्छा दोस्त जिराफ।
लंबी गरदन झुका के अपनी,
उसे जीभ से करता साफ।


पाकर ऐसे दोस्त को,
गिलहरी फूली नहीं समाए।
तभी तो बीच सड़क पर,
ठुमक-ठुमक चली जाए।
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शनिवार, 12 दिसंबर 2009

घूमता लट्टू गिरता क्यों नहीं?



बच्चो, आपने घूमने वाला लट्टू अवश्य देखा होगा। उसे जमीन पर घुमाया या नचाया भी होगा। लट्टू को नाचते हुए देखना सभी को बहुत अच्छा लगता है। एक बार छोड़ने पर लट्टू काफी देर तक घूमता रहता है। गति बहुत कम हो जाने पर ही वह गिरता है। तेज गति से घूमते लट्टू को अगर हल्का-सा छू भी लें तो वह गिरता नहीं। आखिर घूमता हुआ लट्टू गिरता क्यों नहीं?
बच्चो, यह सारा कमाल लट्टू की तेज गति के कारण पैदा होने वाली गतिज ऊर्जा का है। एक बार जब कोई वस्तु घूमना शुरू कर देती है तो घर्षण के होने पर वह घूमती रहती है। लट्टू पर जब धागा कस कर बाँध के खींचा जाता है, तो यह गोलाई में घूमने लगता है। घूमने के इस काम में लट्टू का संतुलित भार भी मदद करता है।अगर लट्टू का आकार ठीक गोलाई में नहीं हो तो वह घूमता नहीं। घूमते वक्त लट्टू का झुकाव बाहर की ओर होता है, इससे भी घूमने में उसे मदद मिलती है। लट्टू के घूमने की गति जितनी तेज होगी, उसे उतनी ही अधिक ऊर्जा मिलेगी। वह अधिक देर तक घुमेंगा। तेज गति वाले लट्टू को रोकना भी उतना ही कठिन होता है। हवा के घर्षण से जब इसकी गति बहुत धीमी हो जाती है, तभी लट्टू गिरता है, तब इसे ऊर्जा जो नहीं मिलती।
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रविवार, 6 दिसंबर 2009

अजब-गजब-2


आग का खेल- एल सल्वाडोर के नगर नेजपा में प्रत्येक वर्ष 31 अगस्त को ‘आग की गेंदों’ का वार्षिक उत्सव मनाया जाता है। इसमें स्थानीय लोग कपड़े से बनी और जलनशील पदार्थ में भीगी सुलगती गेंदें सीधी एक-दूसरे पर फेंकते हैं। वर्ष 1922 में इसी दिन एक ज्वालामुखी के फटने से उसका आग-सा दहकता लावा इस नगर में आ गया था। खतरनाक खेल होने के बावजूद आज तक इस खेल में बहुत अधिक नुकसान नहीं हुआ।

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सुपर रेस्तरांजर्मनी के शहर न्यूरम्बर्ग स्थित एक रेस्तरां ‘बैगर्स’ में लोग मेज की टच सक्रीन पर टाइप कर आर्डर देते हैं। यह सिस्टम ग्राहकों को यह भी बताता है कि उनका दिया हुआ आर्डर कितनी देर में पूरा होगा। आर्डर के बाद खाद्य पदार्थ एक मिनी ट्रेन से आते हैं जो रसोई घर से डाइनिंग रूम तक चलती है। इस आटोमैटिक रेस्तरां मेंएक भी वेटर नहीं है।

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दुनियां में ठोस सोने की सबसे बड़ी चीज - मिस्र के किशोर फराओ(बादशाह) तूतनखामन का ताबूत ठोस सोने का बना है और इसका वजन है 1113 किलो। इस समय यही दुनियां में ठोस सोने से बनी सब से बड़ी वस्तु है। अन्य प्राचीन कलाकृतियां जो सोने की बनी थीं वे गायब हो गई हैं। शायद उन्हें पिघला कर बेच दिया गया। एक सोने का लबादा था जिसका वजन एक टन था। यह द एंथंस के एक्रोपोलिस में एथेना की मूर्ति पर सजाया गया था।

गुरुवार, 5 नवंबर 2009

पहेलियाँ-6

1.गर्मी सहती वर्षा सहती,
देती हूँ सबको आराम।
सर्दी में मैं काम आती,
बतलाओ तो मेरा नाम।


2.हरी-हरी छोटी-सी मछली,
पेट में हरे ही अंडे।
मछली को खाता कोई,
सब खाते उसके अंडे।



3.नीड़ नहीं वह कभी बनाती,
बागों की रानी कहलाती।
काला रंग है उसका भैया,
फिर भी सबके दिल को भाती।



4.नहीं सुनाई देता मुझको,
ही बोल मैं पाती।
आँखें भी नहीं पाई मैने,
फिर भी तुम्हें पढ़ाती।

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पहेलियाँ-5 के उत्तर: 1. लाल मिर्च 2. जूते 3. वृक्ष 4. ताला
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शनिवार, 10 अक्तूबर 2009

पहेलियाँ-5

1. पैदा होऊँ तो हरी-हरी मैं,

बड़ी होऊँ तो लाल।

पेट में रखती मोती-माला,

देखो मेरा कमाल।


2. दोनों का रंग-रूप एक-सा,

दोनों एक सरीखे।

खड़े तो होते साथ-साथ,

पर चलते आगे-पीछे।


3. सीना ताने खड़ा रहूँ मैं,

आए आँधी या तूफान।

जीवों की मैं रक्षा करता,

फल-फूल करता मैं दान।


4. न खाने को न पीने को,

न माँगूं तनख्वाह।

चौकीदारी करता घर की,

सब रहते बेपरवाह।

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बुधवार, 30 सितंबर 2009

चमगादड़ उलटे क्यों लटकते हैं?



बच्चो, आपने बाग में से गुजरते हुए वृक्षों पर चमगादड़ों को लटकते हुए देखा होगा। कई बार तो ये एक ही वृक्ष पर बहुत बड़ी संख्या में लटक रहे होते हैं। तब तो ऐसा लगता है मानो वृक्षपर काले रंग के फल लटक रहे हों। चमगादड़ कई और जगह भी लटके हुए दिखाई दे जाते हैं।लेकिन ये कहीं भी लटके हों, सदा उलटे ही लटके होते हैं। चमगादड़ आपको कभी भी सीधा बैठा हुआ दिखाई नहीं दिया होगा। आओ जानें कि चमगादड़ सदा उलटा ही क्यों लटकता है।
चमगादड़ के उलटा लटकने का मुख्य कारण यह है कि इसके पैरों की हड्डियाँ बहुत कमज़ोर होती हैं। इसकी कमजोर हड्डियाँ इसके शरीर का भार उठा या संभाल नहीं पातीं। जब चमगादड़ जमीन पर होते हैं तब अपने शरीर का सारा भार जमीन पर ही डाल देते हैं। ऐसा करने से पैरों पर शरीर का भार बहुत
पड़ता है। तभी नीचे बैठा हुआ चमगादड़ जमीन पर पसरा हुआ दिखाई देता है।
जब चमगादड़ वृक्ष की किसी शाखा पर उलटे लटकते हैं, तब उनके शरीर का भार पैरों पर पड़ कर शरीर की तनी हुई मांसपेशियों और स्नायुओं पर पड़ता है। अपने पैरों को बचाने के लिए ही चमगादड़ वृक्ष पर उलटे लटकते हैं।
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शनिवार, 26 सितंबर 2009

कहानी/ महँगी पड़ी चालाकी


बहुत पुरानी बात है। एक नगर में अशरफ नाम का एक आदमी रहता था। अशरफ बहुत शैतान था। वह लोगों को परेशान करता रहता था। किसी के भी बिना कारण थप्पड़ मार देता। लोग उसकी शिकायत लेकर नगर के काजी के पास जाते। उन दिनों झगड़ों का निपटारा काजी ही किया करते थे। काजी अशरफ का दोस्त था। काजी हेरफेर कर ऐसा निर्णय देता कि अशरफ को कुछ सज़ा नहीं मिल पाती। लोग शरीफ थे, काजी के विरुद्ध कुछ न बोल पाते। काजी से दोस्ती के कारण अशरफ दिन पर दिन और बिगड़ता जा रहा था। वह लोगों से पैसे छीन लेता, दुकान से सामान उठा कर भाग जाता।

एक बार एक पहलवान उस नगर से होकर जा रहा था। थकावट के कारण थोड़ी देर आराम करने लिए वह वहाँ ठहर गया। जब वह सराय के बाहर बैठा था तो अशरफ भी वहाँ आ गया। एक अनजान व्यक्ति पर नज़र पड़ी तो उसका मन चंचल हो उठा। उसने सोचा कि अगर सबके सामने इस पहलवान के एक थप्पड़ लगा दे तो नगर में उसका दबदबा ओर भी बढ़ जाएगा। उसने आगे बढ़ एक जोरदार तमाचा पहलवान की गाल पर जड़ दिया। अचानक पड़ी इस मार से पहलवान बहुत हैरान-परेशान हुआ। उसे गुस्सा तो बहुत आया, पर बेगाने शहर में अशरफ को मारना ठीक नहीं लगा। वह अशरफ को पकड़ कर काजी की कचहरी में ले गया। उसके साथ नगर के कई लोग भी गए।

काजी ने पहलवान की शिकायत सुनी। लोगों ने उसकी गवाही दी। काजी ने अपने दोस्त को बचाने का ढंग सोचा। उसने अशरफ से गुपचुप बात की और फिर सज़ा सुनाई– एक थप्पड़ मारने का जुर्माना एक रुपया। अशरफ पहलवान को एक रुपया देगा।

अशरफ बोला, मेरे पास इस समय तो एक रुपया नहीं है।

काजी बोला, तो ठीक है, जाओ और कहीं से भी एक रुपया लाकर दो।

अशरफ चला गया। लोगों की कानाफूसी सुन, वह जान गया कि काजी ने जानबूझ कर अशरफ को भगा दिया है। उसने सोच लिया कि वह काजी को उसकी चालाकी की सज़ा जरूर देगा। उसने सबके सामने काजी से पूछा, क्या आपके यहाँ किसी के भी एक थप्पड़ मारने की सज़ा एक रुपया जुर्माना ही है?

काजी बोला, हाँ, थप्पड़ किसी के भी मारा गया हो, एक थप्पड़ का जुर्माना एक रुपया।

तब पहलवान आगे बढ़ा और सब लोगों के सामने काजी के मुँह पर एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया। काजी का गाल लाल हो गया। पहलवान बोला, आपका दोस्त अशरफ जुर्माने का जो एक रुपया लायेगा, वह आप रख लेना।फिर उसने काजी के एक थप्पड़ और मारा तथा कहा, मैं कुश्ती लड़ने जा रहा हूँ, वहाँ मुझे इनाम में बड़ी रकम मिलेगी। दूसरे थप्पड़ के जुर्माने का रुपया मैं वापसी पर देता जाऊँगा।

पहलवान अपने घोड़े पर सवार होकर चलता बना। काजी सिर नीचा किए खड़ा था। उस दिन के बाद काजी और अशरफ दोनों सुधर गए।

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शनिवार, 19 सितंबर 2009

पहेलियाँ-4

1. बीच बाजार में सामने सबके,
थैला ले के आया चोर।
बंद दुकान का ताला खोला,
सारा माल ले गया बटोर।

2. गोरा-चिट्टा खूब हूँ,
पर पहनूं नहीं पाजामा।
मां का तो भाई नहीं,
फिर भी बच्चों का मामा।

3. मुझ से बड़ी पेट में उंगली,
सिर पर रखा पत्थर।
गोल-गोल रूप है मेरा,
बूझो जल्दी उत्तर।

4. जितनी ज्यादा सेवा करता,
उतना घटता जाता हूँ।
सभी रंग का नीला-पीला,
पानी के संग भाता हूँ।
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उत्तर: 1. डाक ले जाने वाला 2. चंदा मामा 3. अंगूठी 4. साबुन ।
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शनिवार, 12 सितंबर 2009

मेरी प्यारी दादी-माँ



श्याम सुन्दर अग्रवाल


मेरी प्यारी दादी-माँ,

सब से न्यारी दादी-माँ ।

बड़े प्यार से सुबह उठाए,

मुझको मेरी दादी-माँ ।


नहला कर वस्त्र पहनाए,

खूब सजाए दादी-माँ ।

उठा कर बैग स्कूल का,

मेरे संग-संग जाए दादी-माँ ।


आप न खाए मुझे खिलाए,

ऐसी प्यारी दादी-माँ ।

फलों का जूस, गिलास दूध का,

मुझे रोज पिलाए दादी-माँ ।


सुंदर वस्त्र और खिलौने,

मुझे दिलाए दादी-माँ ।

बात सुनाए, गीत सुनाए,

रूठूँ तो मनाए दादी-माँ ।


यह करना है, वह नहीं करना,

नित्य समझाए दादी-माँ ।

लोरी देकर पास सुलाए,

मेरी प्यारी दादी-माँ ।।

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शनिवार, 5 सितंबर 2009

हाथी के दाँत


बच्चो, शायद हाथी ही एक मात्र ऐसा जानवर है जिसके पास दाँतों के दो सैट होते हैं। एक सैट मुँह के अंदर, एक सैट बाहर। हाथी अपने इन दाँतों से करते क्या हैं? जो पत्ते व ईख वगैरा हाथी भोजन के रूप में खाते हैं, उसे अपने मुँह के भीतर वाले दाँतों से चबाते हैं। मुख के बाहर दिखने वाले दाँत भोजन खाने अथवा चबाने में हाथी की कोई सहायता नहीं करते। तभी तो कहते हैं–‘हाथी के दाँत, खाने के और, दिखाने के और’।
हाथी की सूंड के दोनों ओर दो लंबे दाँत निकले होते हैं। इन्हें ही हम उसके बाहरी दाँत कहते हैं। हाथी के ये दाँत 6 फुट से भी अधिक लंबे हो सके हैं। अफ्रीकी हाथी के दाँत सबसे लंबे होते हैं। अभी तक के रिकार्ड के अनुसार हाथी के सबसे लंबे दाँत की लंबाई 301 सेंटीमीटर रही है।
क्या हाथी के ये दाँत केवल दिखावे के ही होते हैं? बच्चो, शरीर का कोई भी अंग मात्र दिखावे के लिए नहीं होता।शरीर के सभी अंग किसी न किसी काम के लिए बने होते हैं। आओ जानें कि हाथी अपने इन दो बड़े-बड़े दाँतों से क्या काम लेता है।
हाथी के ये दाँत बहुत मजबूत होते हैं। अपने इन दाँतो का प्रयोग वे अपने नन्हें बच्चों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए करते हैं। इन दाँतों से वे भूमि के नीचे की जड़ों को खोदने का काम भी लेते हैं। और ये नुकीले दाँत शत्रु से बचाने में उसकी बहुत मदद करते हैं। इनसे वह अपने शत्रु को घायल कर देता है। हाथी की मौत के बाद ये दाँत मनुष्य के भी बहुत काम आते हैं। इन से बहुत सी सुंदर वस्तुएँ बनती हैं। इसलिए ही ये बहुत कीमती होते हैं
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रविवार, 30 अगस्त 2009

पढ़ना है जी पढ़ना है








भारी बस्ता उठा के रस्ता,

कैसे भी तय करना है।

पढ़ना है जी पढ़ना है

पढ़-लिख आगे बढ़ना है।


माँ-बापू को मिलें सभी सुख,

भूखे अब नहीं मरना है।

लड़ना अपने हक की खातिर,

नहीं किसी से डरना है।


नया ज्ञान पा कर के हमको,

हर दुश्मन से लड़ना है।

पढ़ना है जी पढ़ना है,

पढ़-लिख आगे बढ़ना है।

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गुरुवार, 27 अगस्त 2009

कहानी ऐनक की



बच्चों को ऐनक बहुत पसंद है। धूप में रंगीन शीशों वाली ऐनक लगाना तो सभी को बहुत भाता है। आओ आज हम जानें कि हमारी यह प्यारी ऐनक बनी कैसे?
शुरू में ऐनक का प्रयोग कमजोर नज़र वाले लोग नज़र बढाने के लिए ही करते थे। इस काम के लिए लैंस की आवश्यकता होती है। इसलिए यह तो स्पष्ट ही है कि ऐनक का जन्म लैंस के आविष्कार के बाद ही हुआ। सर्वप्रथम नज़र बढाने के लिए लैंस का प्रयोग सन् 1286 ई. में इटली के शहर फ्लोरेंस में हुआ। वहाँ उत्तल लैंस( जो बाहर की ओर उभरे होते हैं) दूर की निगाह का दोष दूर करने के लिए उपयोग में लाए जाते थे। पंद्रहवीं शताब्दी में अवतल लैंस(जो भीतर को दबे होते हैं) भी नज़दीक की निगाह ठीक करने के लिए उपयोग में आ गए थे। लेकिन तब तक ऐनक का फ्रेम अस्तित्व में नहीं आया था। आपको फ्रेम बनाने का काम बहुत आसान लग रहा होगा, मगर ऐसा नहीं था। कोई भी नई खोज करना सरल नहीं होता। यह फ्रेम बहुत कठिनाई से अस्तित्व में आया।
प्रारंभ में लैंसो को व्यक्ति के हैट के घेरे के साथ कस कर बाँध दिया जाता था। जब भी व्यक्ति को कुछ पढ़ना होता या देखना होता तो वह अपना हैट उतारता। फिर लैंसों को आँखों के आगे कर के देखता। बार-बार हैट उतारना और पहनना लोगों को अच्छा नहीं लगता था।
तब किसी ने लैंस को कपड़े की एक छोटी पट्टी में सी कर फैंसी-ड्रैस जैसे एक मुखौटे के रूप में पेश किया। यह हैट में लगे लैंसों से तो ठीक था, लेकिन पूरी तरह संतुष्ट करने वाला नहीं था। आवश्यकता पड़ने पर व्यक्ति को पट्टी सिर के पीछे कस कर बांधनी पड़ती था। जब ज़रूरत न रहती तो गाँठ खोल कर उसे उतारना पड़ता।
तब एक व्यक्ति को कुछ नया सूझा। उसने लैंसों को धातु के चक्करों में फिट कर दिया। उसने नाक पर टिकाने के लिए एक अर्धगोलाकार कमानी बनाई। उस कमानी के दोनों ओर धातु के तार लगा कर उनके साथ लैंस जोड़ दिए। यह लगभग आज की ऐनक जैसी ही थी, बस इसके साथ कानों पर टिकने वाली डंडियाँ नहीं थीं। इस ऐनक को नाक के ऊपर अच्छी तरह टिकाना पड़ता था। इसे नाक पर टिका कर रखना सर्कस के कलाकार जैसी महारत वाला काम ही था।
अब इस ऐनक को कानों से जोड़ने का काम शेष था। आपको यह काम बहुत आसान लग रहा होगा। लेकिन जैसा पहले कहा, कुछ नया खोजना इतना आसान नहीं होता। अब जो मैं बताने जा रही हूँ, उसे जान कर आपको अवश्य हैरानी होगी। इस ऐनक को कानों पर टिकाने के लिए दो डंडियाँ लगाने में पूरे तीन सौ वर्ष का समय लगा।
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शनिवार, 22 अगस्त 2009

पहेलियाँ–3

1.सोने की वह चीज है,

पर बेचे नहीं सुनार।

मोल तो ज्यादा है नहीं,

बहुत है उसका भार।


2.छोटा था तो नारी था मैं,

बड़ा हुआ तो नर।

नारी का तो कम मोल था,

नर की बड़ी कदर।


3.नहीं मैं मिलती बाग में,

आधी फल हूँ, आधी फूल।

काली हूँ पर मीठी हूँ,

खा के न पाया कोई भूल।


4.सोने को पलंग नहीं,

न ही महल बनाए,

एक रुपया पास नहीं,

फिर भी राजा कहलाए।

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उत्तर: 1.चारपाई 2. अमिया-आम 3. गुलाबजामुन 4. शेर ।

पहेलियाँ-2 के सही उत्तर देने वाले:

1. संगीता पुरी

2. सुनीता कुमारी

3. बी.एस. नूर

4. निहारिका

शुक्रवार, 21 अगस्त 2009

शिक्षकों के लिए ई-मंच - टीचर्स आफ इंडिया

शिक्षकों के लिए ई-मंच - टीचर्स आफ इंडिया
यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि शिक्षक हमारी शिक्षा व्‍यवस्‍था के हृदय हैं। शिक्षा को अगर बेहतर बनाना है तो शिक्षण विधियों के साथ-साथ शिक्षकों को भी इस हेतु पेशेवर रूप से सक्षम तथा बौद्धिक रूप से सम्‍पन्‍न बनाए जाने की जरूरत है।राष्‍ट्रीय पाठ्यचर्या 2005 में भी शिक्षक की भूमिका पर विशेष रूप से चर्चा की गई है। इसमें कहा गया है कि शिक्षक बहुमुखी संदर्भों में काम करते हैं। शिक्षक को शिक्षा के संदर्भों,विद्यार्थियों की अलग-अलग पृष्‍ठभूमियों,वृहत राष्‍ट्रीय और खगोलीय संदर्भों,समानता,सामाजिक न्‍याय, लिंग समानता आदि के उत्‍कृष्‍ठता लक्ष्‍यों और राष्‍ट्रीय चिंताओं के प्रति ज्‍यादा संवेदनशील और जवाबदेह होना चाहिए। इन अपेक्षाओं पर खरा उतरने के लिए आवश्‍यक है कि शिक्षक-शिक्षा में ऐसे तत्‍वों का समावेश हो जो उन्‍हें इसके लिए सक्षम बना सके।इसके लिए हर स्‍तर पर तरह-तरह के प्रयास करने होंगे। टीचर्स आफ इंडिया पोर्टल ऐसा ही एक प्रयास है। गुणवत्‍ता पूर्ण शिक्षा की प्राप्ति के लिए कार्यरत अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन (एपीएफ) ने इसकी शुरुआत की है। महामहिम राष्‍ट्रपति महोदया श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने वर्ष 2008 में शिक्षक दिवस इसका शुभांरभ किया था। यह हिन्‍दी,कन्‍नड़, तमिल,तेलुगू ,मराठी,उडि़या, गुजराती ‍तथा अंग्रेजी में है। जल्‍द ही मलयालम,पंजाबी,बंगाली और उर्दू में भी शुरू करने की योजना है। पोर्टल राष्‍ट्रीय ज्ञान आयोग द्वारा समर्थित है। इसे आप www.teachersofindia.org पर जाकर देख सकते हैं। यह सुविधा नि:शुल्‍क है।क्‍या है पोर्टल में !इस पोर्टल में क्‍या है इसकी एक झलक यहाँ प्रस्‍तुत है। Teachers of India.org शिक्षकों के लिए एक ऐसी जगह है जहाँ वे अपनी पेशेवर क्षमताओं को बढ़ा सकते हैं। पोर्टल शिक्षकों के लिए-1. एक ऐसा मंच है, जहां वे विभिन्‍न विषयों, भाषाओं और राज्‍यों के शिक्षकों से संवाद कर सकते हैं।2. ऐसे मौके उपलब्‍ध कराता है, जिससे वे देश भर के शिक्षकों के साथ विभिन्‍न शैक्षणिक विधियों और उनके विभिन्‍न पहुलओं पर अपने विचारों, अनुभवों का आदान-प्रदान कर सकते हैं।3. शैक्षिक नवाचार,शिक्षा से सम्बंधित जानकारियों और स्रोतों को दुनिया भर से विभिन्‍न भारतीय भाषाओं में उन तक लाता है।Teachers of India.org शिक्षकों को अपने मत अभिव्‍यक्‍त करने के लिए मंच भी देता है। शिक्षक अपने शैक्षणिक जीवन के किसी भी विषय पर अपने विचारों को पोर्टल पर रख सकते हैं। पोर्टल के लिए सामग्री भेज सकते हैं। यह सामग्री शिक्षण विधियों, स्‍कूल के अनुभवों, आजमाए गए शैक्षिक नवाचारों या नए विचारों के बारे में हो सकती है।विभिन्न शैक्षिक विषयों, मुद्दों पर लेख, शिक्षानीतियों से सम्बंधित दस्‍तावेज,शैक्षणिक निर्देशिकाएँ, माडॅयूल्स आदि पोर्टल से सीधे या विभिन्न लिंक के माध्‍यम से प्राप्‍त किए जा सकते हैं।शिक्षक विभिन्न स्‍तम्‍भों के माध्‍यम से पोर्टल पर भागीदारी कर सकते हैं।माह के शिक्षक पोर्टल का एक विशेष फीचर है। इसमें हम ऐसे शिक्षकों को सामने ला रहे हैं,जिन्‍होंने अपने उल्लेखनीय शैक्षणिक काम की बदौलत न केवल स्‍कूल को नई दिशा दी है, वरन् समुदाय के बीच शिक्षक की छवि को सही मायने में स्‍थापित किया है। पोर्टल पर एक ऐसी डायरेक्‍टरी भी है जो शिक्षा के विभिन्‍न क्षेत्रों में काम कर रही संस्‍थाओं की जानकारी देती है।आप सबसे अनुरोध है कि कम से कम एक बार इस पोर्टल पर जरूर आएँ। खासकर वे साथी जो शिक्षक हैं या फिर शिक्षा से किसी न किसी रूप में जुड़े हैं। अगर आपका अपना कोई ब्‍लाग है तो इस जानकारी को या टीचर्स आफ इंडिया के लिंक को उस पर देने का कष्‍ट करें।इस पोर्टल के बारे में अधिक जानकारी के लिए आप मुझसे utsahi@gmail.comया utsahi@azimpremjifoundation.org पर संपर्क कर सकते हैं।तो मुझे आपका इंतजार रहेगा।

बुधवार, 19 अगस्त 2009

राजा दुम दबाकर भागा







रोक कार को बोला शेर,
खोलो खिड़की करो देर।
जंगल का मैं राजा हूँ,
कहते मुझको बब्बर शेर।

जंगल-दिवसआज हमारा,
करनी मुझको लंबी सैर।
अगर नहीं करवाओगे तो,
बच्चू नहीं तुम्हारी खैर।

रिंग-मास्टर सर्कस का हूँ,
नाम है मेरासागा
कहा कार वाले ने तो,
राजा दुम दबाकर भागा।
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शनिवार, 15 अगस्त 2009

आसमान में क्यों चमकती है बिजली?


बच्चो, आपने वर्षा से पहले या वर्षा के दौरान आसमान में बिजली चमकती तो अवश्य देखी होगी। अकसर ही जब आकाश में बादल छा जाते हैं और तेज हवा चलती है तो बिजली चमकती है। बिजली वर्षा आने से पहले अथवा वर्षा के बीच भी चमकती हुई देखी जाती है। आओ जाने कि बिजली चमकती क्यों है?

बादलों में नमी होती है। यह नमी बादलों में जल के बहुत बारीक कणों के रूप में होती है। हवा और जलकणों के बीच घर्षण होता है। घर्षण से बिजली पैदा होती है और जलकण आवेशित हो जाते हैं यानि चार्ज हो जाते हैं। बादलों के कुछ समूह धनात्मक तो कुछ ऋणात्मक आवेशित होते हैं। धनात्मक और ऋणात्मक आवेशित बादल जब एक-दूसरे के समीप आते हैं तो टकराने से अति उच्च शक्ति की बिजली उत्पन्न होती है। इससे दोनों तरह के बादलों के बीच हवा में विद्युत-प्रवाह गतिमान हो जाता है। विद्युत-धारा के प्रवाहित होने से रोशनी की तेज चमक पैदा होती है। आकाश में यह चमक अकसर दो-तान किलोमीटर की ऊँचाई पर ही उत्पन्न होती है। इस चमक के उत्पन्न होने के बाद हमें बादलों की गरज भी सुनाई देती है। बिजली और गरज के बीच गहरा रिश्ता है। बिजली चमकने के बाद ही बादल क्यों गरजते है?

वास्तव में हवा में प्रवाहित विद्युत-धारा से बहुत अधिक गरमी पैदा होती है। हवा में गरमी आने से यह अत्याधिक तेजी से फैलती है और इसके लाखों करोड़ अणु आपस में टकराते हैं। इन अणुओं के आपस में टकराने से ही गरज की आवाज उत्पन्न होती है। प्रकाश की गति अधिक होने से बिजली की चमक हमें पहले दिखाई देती है। ध्वनि की गति प्रकाश की गति से कम होने के कारण बादलों की गरज हम तक देर से पहुँचती है।

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गुरुवार, 13 अगस्त 2009

पहेलियाँ-2

1.वैज्ञानिक तो फल कहते हैं
लोग कहें मुझे सब्जी,
लाल-लाल हूँ गोल-मटोल
खा कर दूर हो कब्जी।


2.काला रंग है उसकी शान
सबको देता है वह ज्ञान,
शिक्षक उससे लेते काम
तन-रंग जैसा उसका नाम।


3.रंग-बिरंगी प्यारी-प्यारी
दिखने में मैं सबसे न्यारी,
छोटे हल्के पंख फैलाऊँ
बगिया में मैं रौनक लाऊँ।


4.देखी रात अनोखी वर्षा
सारा खेत नहाया,

पानी तो पूरा शुद्ध था

पर पी न कोई पाया।

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4.देखी raaउत्तरः 1. टमाटर 2. ब्लैक-बोर्ड 3. तितली 4. ओस
------------------------------------------------------------- वर्षा
सारा खेत नहाया,
पानी तो पूरा शुद्ध था
पर पी कोई


पहेलियाँ-1 के सही उत्तर देने वालेः
1. श्री अशोक मनोचा
2. श्रीमती कमलेश रानी
3. श्रीमती मेघा
4. श्री सर्वेश गोयल
5. सुश्री निहारिका
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मंगलवार, 11 अगस्त 2009

भगवान की गायें


श्याम सुन्दर अग्रवाल


बदनपुर नाम का एक गाँव था। गाँव में एक सौ के लगभग परिवार रहते थे। अधिकतर लोग खेती-बाड़ी का काम करते थे। लोग बहुत परिश्रमी थे। खेती केवल वर्षा पर निर्भर थी। इसलिए फसल कभी अच्छी हो जाती, कभी ठीक-ठीक।

एक सन्यासी ने गाँववालों से कहा कि अगर वे गाँव में एक मंदिर बनवा लें तो गाँव में खूब बारिश होगी। गाँववालों ने मिल कर एक मंदिर बनवा लिया। गाँव के लोग तो सब भोले-भाले व सीधे थे। किसी को पूजा-पाठ करना नहीं आता था। गाँव में कोई ब्राह्मण परिवार भी नहीं था। शादी-ब्याह के अवसर पर भी आसपास के गाँवों से ही ब्राह्मण आ जाते थे। लोगों ने सोचा, अगर उनके मंदिर में कोई पुजारी आकर रहने लगे तो अच्छा हो। भगवान की पूजा-पाठ का काम ठीक से होता रहेगा। भगवान खुश रहेंगे तो उन पर दया करेंगे।

पास के गाँव में रामचरण नाम का एक पुजारी रहता था। वह बहुत लालची व धूर्त था। इसलिए किसी भी मंदिर में अधिक समय तक नहीं टिक पाता था। उन दिनों कोई काम न होने के कारण वह भूखा मर रहा था। उसे पता चला तो वह अपनी पत्नी के साथ बदनपुर दौड़ा चला आया। उसके पास तन के वस्त्रों के अतिरिक्त मात्र दो मरियल-सी गायें ही थीं।

मंदिर में पुजारी के आ जाने से बदनपुर के लोग बहुत खुश हुए। वे तीनों वक्त पुजारी को खाने के लिए भोजन पहुँचाते। उन्होंने उसे पहनने को अच्छे वस्त्र भी दिए। मंदिर में सुबह-शाम आरती होने लगी। गाँव के लोग आरती में भाग लेने मंदिर जाते।

पुजारी रामचरण को भरपेट भोजन मिलने लगा तो उसके भीतर का लालच व छल-कपट जाग उठा। वह सवेरे व सायं आरती के बाद लोगों से कहता,आप भगवान के नाम पर अधिक से अधिक दान दें। आप जो देंगे, भगवान आपको उसका सात गुणा देगा।

भोले-भाले लोग पुजारी की बात पर विश्वास कर थोड़ा बहुत उसे देते रहते। मगर इतने से लालची रामचरण का मन नहीं भरता। वह कभी गाय का दूध बेचने का काम किया करता था। उसने सोचा, अगर वह लोगों को फुसला कर भगवान के नाम पर उनकी गायें ले ले तो उसका दूध का काम चल सकता है।

उसने गाँव के उन लोगों पर नज़र रखनी शुरू कर दी, जिनके पास गायें थीं। सुबह की आरती के बाद वह उनमें से किसी एक को रोक लेता तथा गाय दान करने के लिए उकसाता । वह कहता, तुम भगवान को एक गाय दोगे तो वह आपको सात गायें देगा।

लोग उस धूर्त की बातों में आने लगे। एक-एक कर उसने चार गरीब किसानो से उनकी गायें दान में ले लीं। लोगों से गायें लेकर वह बहुत खुश था। अब वह फिर से दूध बेचने लगा।

उस गाँव में सतपाल नाम का एक किसान भी रहता था। उसके पास थोड़ी-सी जमीन थी। खेती से पैदावार भी ठीक-ठीक ही होती थी। घर में पति-पत्नी दोनों ही थे। उनके कोई बच्चा नहीं था। इसलिए गुज़र-बसर ठीक से हो जाती थी। सतपाल के पास एक बढ़िया नस्ल की गाय थी। वह अपनी गाय को बहुत प्यार करता था। वह गाय की सेवा में भी कोई कसर नहीं छोड़ता था। उसे भी पुजारी कई बार गऊदान करने के लिए कह चुका था। परंतु सतपाल का मन नहीं मान रहा था।

एक दिन प्रात: सतपाल अपनी पत्नी के साथ मंदिर गया तो पुजारी ने सब लोगों के सामने कहा, आज के दिन गऊदान का बहुत महत्व है। जो लोग गऊदान करेंगे, भगवान उन्हें बहुत जल्द एक की सात गायें देगा। भगवान उनके घर बेटा भी देगा।

घर पहुँच कर सतपाल की पत्नी बोली, हो सकता है पुजारी जी सच कह रहे हों। क्यों न हम अपनी गाय दान कर दें। घर में सात गायें हो जायेंगी और एक बेटा भी। हमारा मन लगा रहेगा।

सतपाल ने पत्नी की बात मान ली। वह तुरंत अपनी गाय पुजारी को दे आया। इतनी अच्छी गाय पाकर पुजारी खुशी से पागल हो उठा। उसके मन की इच्छा पूरी हो गई थी।

पुजारी ने अन्य गायों के साथ सतपाल की गाय भी चरने के लिए छोड़ दी। सतपाल की गाय थी बहुत तेज। नित्य की तरह चरने के बाद सायं को उसने सतपाल के घर का रुख कर लिया। उसके पीछे-पीछे पुजारी की शेष छ: गायें भी सतपाल के घर चली गईं।

इतनी जल्दी सात गायें पाकर सतपाल बहुत खुश था। उसने पत्नी से कहा, पुजारी जी ठीक ही कहते थे। भगवान ने हमें आज ही सात गायें दे दीं।

जब गायें पुजारी के घर नहीं पहुँची तो उन्हें ढूँढ़ने वह गाँव में निकला। गायें ढूँढ़ता वह सतपाल के घर भी गया। वहाँ अपनी गायें देखकर वह बोला, ये सब तो मेरी गायें हैं, मेरे घर छोड़कर आओ।

सतपाल बोला, पुजारी जी, ये आपकी नहीं, भगवान की गायें हैं। आपने ही तो सुबह कहा था, भगवान आपको सात गायें देगा। सो उसने हमें दे दीं।

जब सतपाल गायें देने को राजी न हुआ तो पुजारी गाँव के मुखिया के पास गया। मुखिया ने भी कहा, आज आपने ही तो कहा था कि भगवान एक बदले सात गायें देगा। सो भगवान ने उसके घर भेज दीं।

पुजारी अपना-सा मुँह लेकर आ गया। लालच में उसकी अपनी दो गायें भी चली गईं।

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