गुरुवार, 13 जनवरी 2011

क्या कहती है घड़ी ?


डॉ. नागेश पांडेय 'संजय'



टिक-टिक, टिक-टिक, करे घड़ी,

क्या कहती है अरे , घड़ी?

कहती– जो चलते जाते हैं,

वे अपनी मंजिल पाते हैं।

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शनिवार, 8 जनवरी 2011

ठुर-ठुर करती सर्दी आई

बर्फ जो गिरी पहाड़ पर

मैदान हो गए शीत।

ठुर-ठुर करते दादाजी के

दाँत भी गाएँ गीत।


सिर पर चढ़ बैठी है टोपी

बदन को ढ़के स्वीटर।

चाय-पकौड़ी, मुँगफली

संग चलता है हीटर।



सूरज निकला ओढ़ रजाई

गरमी-सा रहा न रूप।

दादी निकली, गई कई घर

पर ढूँढी मिली न धूप।

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