बुधवार, 30 मार्च 2011

पदवी की लड़ाई

तू राजा कि मैं राजा?
करें फैसला, कैसी देर।
जंगल की पदवी की खातिर,
बीच मैदान में भिड़ गए शेर।
लगे देखने लोग लड़ाई,
चारों ओर से उनको घेर।
लहूलुहान हुए लड़-लड़ कर,
जल्दी दोनों हो गए ढ़ेर।
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शनिवार, 26 मार्च 2011

चीनी लोककथा


                    बिल्ली का दर्पण

एक दिन जंगल में शेर ने एक बिल्ली पकड़ी। 
वह उसे खाने की सोचने लगा।


बिल्ली ने पूछा, तुम मुझे क्यों खाना चाहते हो?
शेर ने कहा, इसलिए कि मैं बड़ा हूँ और तुम छोटी हो।


बिल्ली ने आँखें मिचमिचाई और कहा, नहीं, बड़ी तो मैं हूँ, तुम तो छोटे हो। तुम कैसे कहते हो कि तुम मुझसे बड़े हो?” 
 


बिल्ली की बात सुनकर शेर उलझन में पड़ गया।



शेर ने मन ही मन कहा, बात तो इसकी ठीक है। मैं कैसे जान सकता हूँ कि मैं कितना बड़ा हूँ?
बिल्ली ने कहा, मेरे घर में एक दर्पण है, तुम दर्पण में अपने को देखोगे तो तुम्हें पता चल जाएगा।



 शेर ने अपने को दर्पण में कभी नहीं देखा था, वह ऐसा करने के लिए तुरंत तैयार हो गया।
बिल्ली का दर्पण बड़ा अजीब था। उसकी सतह तो उभरी हुई थी, पर पिछला भाग भीतर को धंसा हुआ था।



 बिल्ली ने उभरा हुआ भाग शेर के सामने कर दिया।
शेर में दर्पण में देखा कि वह तो एक दुबली-पतली गिलहरी जितना लग रहा था।



बिल्ली ने कहा, पता लग गया न! कितने बड़े हो? यह दर्पण तो असल से थोड़ा बड़ा ही दिखाता है। वास्तव में तो तुम इससे भी छोटे हो।”
शेर डर गया। उसने सिर झुका लिया। बिल्ली ने चुपके से दर्पण घुमा दिया।



फिर बोली, अब जरा तुम हटो और मुझे अपने को देखने दो।



 आँख चुराकर शेर ने भी चुपके से देखा। दर्पण में बिल्ली बड़ी व भयानक नज़र आ रही थी। बिल्ली का मुँह तो काफी बड़ा हो गया था।



 वह कभी खुलता था, कभी बंद होता था और बड़ा डरावना लग रहा था।




शेर ने सोचा, बिल्ली उसे खाना चाहती है। मारे डर के वह जंगल में भाग गया।


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बुधवार, 16 मार्च 2011

पचास वर्ष में पूरी की मैराथन दौड़


बात सन् 1912 की है। स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में ओलम्पिक खेल हो रहे थे। मैराथन दौड़ के दौरान जापान का एक धावक शिजो कनाकुनी अचानक गायब हो गया। अंतिम बार उसे स्टॉकहोम से कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक रिफ्रैशमैंट स्टाल पर देखा गया था। उसके बाद उसे किसी ने नहीं देखा।
सन् 1963 में एक स्वीडिश पत्रकार ने उस धावक को जापान में देख लिया। पूछने पर कनाकुनी ने बताया कि वह बहुत थक गया था। उस रिफ्रैशमैंट स्टाल पर उसने कोल्ड ड्रिंक पिया, लेकिन उससे उसकी थकान कम नहीं हुई। उसे लगा कि उसे घर चले जाना चाहिए। उसी समय वहाँ से एक ट्रॉम गुजरी। वह ट्रॉम में चढ़ कर राजधानी पहुँच गया। बाद में एक बोट से वह जापान पहुँच गया। लोग उसकी हँसी उड़ायेंगे, यह सोचकर उसने किसी को कुछ नहीं बताया।
उस पत्रकार ने कनाकुनी को सुझाव दिया कि उसने जिस स्थान से मैराथन दौड़ छोड़ी थी, उसी स्थान से दोबारा दौड़ कर अपनी मैराथन दौड़ पूरी कर ले। कनाकुनी ने उसकी बात मान ली। इस तरह लगभग सत्तर वर्ष की उम्र में उसने मैराथन दौड़ पूरी की।
इस तरह 1912 में शुरू कर 1963 में पूरी हुई दौड़, पचास वर्ष से भी अधिक समय में।
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गुरुवार, 3 मार्च 2011

बच्चों ने धूप से बनाया आमलेट


रविवार के दिन बच्चे घर पर अकेले थे। उन का मन आमलेट खाने को कर रहा था। फ्रिज में अंडे पड़े थे, लेकिन रसोई में गैस का सिलेंडर खाली था। उनकी माँ शायद गैस का इंतजाम करने ही गई थी।
जब रोहित ने आमलेट खाने की जिद्द की तो उसकी बड़ी बहन तान्या ने कहा, आज हम धूप से आमलेट बना कर देखते हैं।
तान्या ने घर के लॉन में पड़ी एक पुरानी डिश के भीतरी भाग में कुछ पुराने शीशे (दर्पण) लगा दिए। सभी शीशों का मुँह सूरज की ओर कर दिया। डिश के किनारों से जुड़ी लोहे की तीन सलाखों के ऊपर एक गोल चक्कर था। सभी दर्पण सूरज की रोशनी को उस गोल चक्कर पर फेंक रहे थे। तान्या ने एक फ्राइंगपैन चक्कर पर रख दिया। बच्चों ने देखा कि फाइंगपैन बिना आग के ही बहुत गर्म हो गया था।
तान्या ने गर्म फ्रइंगपैन में थोड़ा मक्खन डाला। मक्खन जल्दी ही पिघल गया। फिर तान्या ने थोड़ा मसाला डाला तथा पैन को हिलाया। अंत में कुछ अंडे तोड़ कर उसमें डाल दिए गए। बच्चे बहुत उत्साहित थे। मात्र पाँच-छः मिनट में ही उनके लिए आमलेट बन कर तैयार हो गया था।
रोहित, तान्या तथा सबसे छोटी कनु बहुत मजे से आमलेट खा रहे थे। आमलेट बना ही बहुत स्वादिष्ट था। रोहित बोला, दीदी, अब हम धूप से ही आमलेट बनाया करेंगे।
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