रविवार, 5 सितंबर 2010

बाघ




लाल-पीला मिला हुआ रंग
ऊपर काली धारी।
कहीं-कहीं पर फिरी सफेदी
यह पहचान हमारी।

शरीर बहुत है लंबा
है भी भारी भरकम।
दौड़ तो बहुत तेज लगाते
पर जल्दी फूले दम।

सांभर, चीतल, भैंसे जंगली
बनें खुराक हमारी।
राष्ट्रीय-पशुकी मिली उपाधि
यह है शान हमारी।
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5 टिप्‍पणियां:

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…

इस पोस्ट की चर्चा यहाँ है -
कान्हा मेरे मन का मीत : सरस चर्चा (12)

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सचमुच, आपकी पोस्ट बहुत बढ़िया है।
--
इसकी चर्चा बाल चर्चा मंच पर भी है!
http://mayankkhatima.blogspot.com/2010/09/16.html

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

राष्ट्रीय-पशु’ की मिली उपाधि
यह है शान हमारी।

...Bahut sundar.

रानीविशाल ने कहा…

Bahut acchi kavita....aabhar
main nanhi blogger
अनुष्का

सहज साहित्य ने कहा…

बाघ का सरल और सरस भाषा में किया गया चित्रण बच्चों के लिए मनोहारी बन गया है ।