बाल-संसार
BAL SANSAR
बच्चों के निर्मल मन की गहराइयों तक उतरने की चाह
शनिवार, 31 दिसंबर 2011
बुधवार, 14 सितंबर 2011
जादू का कालीन
नीहारिका अग्रवाल
रविवार का दिन था। रोहित सुबह उठ कर अपने बगीचे में गया। वहाँ लॉन में उसे एक सुंदर कालीन दिखा। उसे लगा, यह जादू का कालीन है। उड़ने वाला कालीन। आकाश की परियों से नीचे गिर गया होगा। उसने अपनी बहन सोनाली को बुला कर कालीन दिखाया। जादू का सुंदर कालीन देख कर सोनाली भी बहुत खुश हुई। वह बोली, “भैया! इस पर बैठकर हम आकाश की सैर करें। बहुत मजा आएगा।”
रोहित की भी आकाश में उड़ने की बहुत इच्छा थी। दोनों भाई-बहन कालीन पर बैठ गए। एक चिड़िया तो पहले से ही कालीन पर बैठी थी। सोनाली ने ऐसे कालीन की एक कहानी सुन रखी थी। वह बोली, “चल कालीन, छोड़ ज़मीन!”
उसके इतना कहते ही कालीन ऊपर उठने लगा। कालीन को ऊपर उठता देख उनका कुत्ता मोती भी छलांग लगा कर उस पर चढ़ गया। वृक्ष की डाल पर बैठे रोमी बंदर ने कालीन को आकाश की ओर जाते देखा। उसकी इच्छा भी आकाश में जाने की हुई। वह भी तुरंत कालीन पर चढ़ने के लिए कूदा। परंतु तब तक देर हो चुकी थी। वह मुश्किल से कालीन का छोर पकड़ कर उसके साथ लटक सका।
धीरे-धीरे कालीन ऊपर को उड़ता गया। पर्वत, पक्षी सब नीचे छूट गए। कालीन बादलों से भी ऊपर चला गया। रोहित ने झुक कर नीचे की ओर देखा। उसे पहाड़ छोटे-छोटे लगे। खेत यूँ लगे मानो किसी ने धरती को हरे रंग में रंग दिया हो। सभी को ठंडी-ठंडी हवा में इतना ऊँचा उड़ना बहुत अच्छा लग रहा था।
थोड़ी देर में सूरज निकल आया। गरमी बढ़ने लगी तो सभी परेशान हो गए। सभी ने नीचे उतरना चाहा। तब सोनाली बोली, “चल मेरे कालीन, जल्दी छू ले ज़मीन!”
कुछ ही क्षणों में कालीन ज़मीन पर उतर आया। सभी आकाश की सैर कर बहुत खुश थे।
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गुरुवार, 1 सितंबर 2011
मेहनत का मंत्र
श्याम सुन्दर अग्रवाल
स्कूल में एक जादूगर आया। उसने कहा कि वह एक मंत्र जानता है। मंत्र से वह कुछ भी कर सकता है। मंत्र पढ़कर उसने खाली हैट से सफेद खरगोश निकाला। एक रुपये के नोट को दस रुपये का बना दिया। पानी का दूध बना दिया।
जादूगर तमाशा दिखा चुका तो एक बच्चा उसके पास गया। बोला, “जादूगर अंकल, मुझे अपना मंत्र सिखा दो।”
“तुम क्या करोगे मंत्र सीखकर?” जादूगर ने पूछा।
“परीक्षा में मेरे नंबर कम आते हैं। मंत्र से अपने नंबर बढ़ा लूंगा।”
उसके पीछे खड़ा दूसरा लड़का बोला, “अंकल, मैंने तो भगवान को सवा रुपये का प्रसाद चढ़ाने को भी बोला था। फिर भी फेल हो गया। मुझे भी मंत्र सिखा दो।”
जादूगर ने कहा, “बच्चो, ये तो मेहनत का मंत्र है। मैंने बहुत मेहनत कर अपने गुरू से ये सब खेल सीखे हैं। मेहनत और अभ्यास से इन्हें सफाई से करना सीख गया। जादू-वादू कुछ नहीं है। एक के दस कर सकता तो घर बैठकर ही रुपये बना लेता। तमाशा दिखाने का बच्चों से एक-एक रुपया क्यों लेता?”
बच्चे हैरान थे। जादूगर बोला, “बच्चो, मन लगाकर मेहनत करो। मेहनत के मंत्र से तुम्हें सफलता जरूर मिलेगी।”
बच्चों ने जादूगर की बात मान खूब मेहनत की। परीक्षा में दोनों को बहुत अच्छे अंक मिले।
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रविवार, 1 मई 2011
गुरुवार, 21 अप्रैल 2011
अजब-गजब-6
विलक्षण प्रतिभा– बिहार की राजधानी पटना का रहने वाला अवतार तुलसी विलक्षण प्रतिभा का धनी है। अवतार ने मात्र 9 वर्ष की उम्र में हाई स्कूल की परीक्षा पास कर ली। दस वर्ष की उम्र में बैचलर डिग्री और बारह वर्ष की उम्र में पोस्टग्रैजुएशन डिग्री प्राप्त कर अवतार ने बहुत नाम कमाया। मात्र 21 वर्ष की उम्र में उसने भौतिक विज्ञान में पी.एच.डी की डिग्री हासिल कर ली। उसका नाम सबसे कम उम्र के पोस्टग्रजुएट के तौर पर ‘गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्डस’ में दर्ज है।
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• गणितज्ञ मुर्गी– बच्चो, हम कभी सोच भी नहीं सकते कि मुर्गी जैसा कोई जानवर अंक-गणित का थोड़ा सा भी ज्ञान रख सकता है। मगर चीन के शेनयांग प्रांत में एक मुर्गी है जो सरल अंक-गणित जानती है। मुर्गी के मालिक का कहना है कि जब वह बोर्ड पर अंकों की ओर संकेत करके मुर्गी से सवाल पूछता है तो वह अपनी चोंच से सही स्थान पर ‘ठक’ करके सरल गणनाओं के सही उत्तर दे देती है।
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• नाक का उपयोग– हम अपने नाक का प्रयोग साँस लेने के अतिरिक्त सूँघने के लिए ही करते हैं। लेकिन चीन के अनहुई राज्य का एक चीनी कलाकार नाक का उपयोग पेय पदार्थों को पीने के लिए भी कर लेता है।
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गुरुवार, 7 अप्रैल 2011
छतरी की यात्रा-2
देवदार से बात कर छतरियाँ आगे की ओर उड़ने लगीं। अचानक उन्हें तड़ाक-तड़ाक की आवाज सुनाई दी। बात यह थी कि सोयाबीन की फली चटकी थी। सोयाबीन का बच्चा फली से बाहर कूदा।
बाहर कूदते ही बच्चा जमीन पर गिर पड़ा और सो गया। जब वह जागा तो उसमें से अंकुर निकला।
छतरियाँ आगे की ओर उड़ती रहीं। एक छतरी तो बहुत आगे निकल गई। जब वह तालाब के सामने से गुजरी तो देखा– कमल पर एक फव्वारे जैसा फल लगा हुआ है और उसमें बहुत सारे बीज भी हैं।
देर तक सफर करने के बाद छतरी थक गई। वह एक मैदान में उतरी और आराम करने लगी।
हवा चलती रही और उसने ‘छतरी’ को मिट्टी की चादर ओढ़ा दी। सूरज उसे धूप से सेंक देता रहा। बादल उसे पानी पिलाता रहा। कुछ दिनों बाद छतरी जागी और उसने अपना सिर मिट्टी से बाहर निकाला। धीरे-धीरे उसमें से पत्तियाँ निकल आईं और वह ककरौंधे का पौधा बन गई।
ककरौंधे के पौधे ने अपनी आँख खोली तो देखा कि उसके पास एक गोखरू का पौधा उगा हुआ है। ककरौंधे ने पूछा, “गोखरू भाई, आप यहाँ किस तरह आए?”
गोखरू ने मुस्कराते हुए कहा, “ जब तुम उड़ीं तो मैं बहुत उदास हो गया। उसी समय एक हिरन दौड़ता हुआ वहाँ से गुजरा। मैं उसके शरीर से चिपक गया और उसके साथ-साथ यात्रा करने लगा। यहाँ आकर उसने अपने शरीर को खुजलाया और मुझे गिरा दिया।”
ककरौंधे के पौधे ने खुशी से हँसते हुए कहा, “वाह! वाह! कितनी दिलचस्प बात है कि आप हिरन पर सवार होकर यात्रा करते हो।”
वे अच्छे दोस्त हैं। अब वे एक ही जगह रहते हैं और बहुत खुश हैं।
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