शनिवार, 11 जुलाई 2009

हाथी जी









प्यारे
-प्यारे हाथी जी,
बन जाओ मेरे साथी जी।

झुक कर मुझ से हाथ मिलाओ,
पीठ पर अपनी मुझे बिठाओ।

घर पर तुम्हें ले जाऊँगा,
बच्चों को डराऊँगा।
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4 टिप्‍पणियां:

तीसरी आंख ने कहा…

bahut sundar baal geet . dhanyawad.

नितिन | Nitin Vyas ने कहा…

मै तो समझा फिर मेरे लिये कोई फरमान है लेकिन ये तो सुन्दर तोहफा है।
शुक्रिया!!

M VERMA ने कहा…

bahut achchhi rachana

सहज साहित्य ने कहा…

्बच्चों को डराने की बात बहुत स्वाभाविक है ।सरल और सरस कविता।