राजा दुम दबाकर भागा

रोक कार को बोला शेर, खोलो खिड़की करो न देर। जंगल का मैं राजा हूँ, कहते मुझको बब्बर शेर।
‘जंगल-दिवस’ आज हमारा, करनी मुझको लंबी सैर। अगर नहीं करवाओगे तो, बच्चू नहीं तुम्हारी खैर।
रिंग-मास्टर सर्कस का हूँ, नाम है मेरा ‘सागा’ । कहा कार वाले ने तो, राजा दुम दबाकर भागा। *****
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6 टिप्पणियां:
सुन्दर बाल कविता किरण जी।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
बहुत ही परिपक्व रचना है । आप बाल-मन के अनुकूल लिख रहे हैं ।कोटिश: शुभकामनाएँ !
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
बहुत ही प्यारी कविता, तारीफ के ळिए शब्द नहीं हैं…
ब्लाग पर आने व अपनी राय देने के लिए आप सब का धन्यवाद।
अति सुन्दर बालकविता!!!
आभार्!
मन मोह लेने वाली कविता के लिए शुक्रिया।
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