शुक्रवार, 5 जून 2009
चंदा मामा
श्याम सुन्दर अग्रवाल
चंदा मामा बड़ा ही प्यारा,
गुड़िया का वह दोस्त न्यारा।
घर पर जा पहुँचे जब सूरज,
दूर करे थोड़ा अंधियारा ।
छत पर जाकर गुड़िया रानी,
रोज रात बतियाती ।
चमक रहे चंदा मामा को,
बातें बहुत सुनाती ।
पूर्णिमा के बाद चाँद को
जब घटते जाते देखा ।
गुड़िया के चेहरे पर फिर गई,
चिंता की इक रेखा ।
क्या बात है मित्र क्यों तुम,
दुबले होते जाते ।
दूध नहीं पीते हो या फिर,
भोजन नहीं चबा कर खाते।
मोटे-ताजे अच्छे लगते,
मुझको तुम गोल-मटोल।
दो बार तुम्हें दूध पिलाए,
मम्मी जी से देना बोल ।
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