बहुत पुरानी बात है। एक नगर में अशरफ नाम का एक आदमी रहता था। अशरफ बहुत शैतान था। वह लोगों को परेशान करता रहता था। किसी के भी बिना कारण थप्पड़ मार देता। लोग उसकी शिकायत लेकर नगर के काजी के पास जाते। उन दिनों झगड़ों का निपटारा काजी ही किया करते थे। काजी अशरफ का दोस्त था। काजी हेरफेर कर ऐसा निर्णय देता कि अशरफ को कुछ सज़ा नहीं मिल पाती। लोग शरीफ थे, काजी के विरुद्ध कुछ न बोल पाते। काजी से दोस्ती के कारण अशरफ दिन पर दिन और बिगड़ता जा रहा था। वह लोगों से पैसे छीन लेता, दुकान से सामान उठा कर भाग जाता।
एक बार एक पहलवान उस नगर से होकर जा रहा था। थकावट के कारण थोड़ी देर आराम करने लिए वह वहाँ ठहर गया। जब वह सराय के बाहर बैठा था तो अशरफ भी वहाँ आ गया। एक अनजान व्यक्ति पर नज़र पड़ी तो उसका मन चंचल हो उठा। उसने सोचा कि अगर सबके सामने इस पहलवान के एक थप्पड़ लगा दे तो नगर में उसका दबदबा ओर भी बढ़ जाएगा। उसने आगे बढ़ एक जोरदार तमाचा पहलवान की गाल पर जड़ दिया। अचानक पड़ी इस मार से पहलवान बहुत हैरान-परेशान हुआ। उसे गुस्सा तो बहुत आया, पर बेगाने शहर में अशरफ को मारना ठीक नहीं लगा। वह अशरफ को पकड़ कर काजी की कचहरी में ले गया। उसके साथ नगर के कई लोग भी गए।
काजी ने पहलवान की शिकायत सुनी। लोगों ने उसकी गवाही दी। काजी ने अपने दोस्त को बचाने का ढंग सोचा। उसने अशरफ से गुपचुप बात की और फिर सज़ा सुनाई– “एक थप्पड़ मारने का जुर्माना एक रुपया। अशरफ पहलवान को एक रुपया देगा।”
अशरफ बोला, “मेरे पास इस समय तो एक रुपया नहीं है।”
काजी बोला, “तो ठीक है, जाओ और कहीं से भी एक रुपया लाकर दो।”
अशरफ चला गया। लोगों की कानाफूसी सुन, वह जान गया कि काजी ने जानबूझ कर अशरफ को भगा दिया है। उसने सोच लिया कि वह काजी को उसकी चालाकी की सज़ा जरूर देगा। उसने सबके सामने काजी से पूछा, “क्या आपके यहाँ किसी के भी एक थप्पड़ मारने की सज़ा एक रुपया जुर्माना ही है?”
काजी बोला, “हाँ, थप्पड़ किसी के भी मारा गया हो, एक थप्पड़ का जुर्माना एक रुपया।”
तब पहलवान आगे बढ़ा और सब लोगों के सामने काजी के मुँह पर एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया। काजी का गाल लाल हो गया। पहलवान बोला, “आपका दोस्त अशरफ जुर्माने का जो एक रुपया लायेगा, वह आप रख लेना।” फिर उसने काजी के एक थप्पड़ और मारा तथा कहा, “मैं कुश्ती लड़ने जा रहा हूँ, वहाँ मुझे इनाम में बड़ी रकम मिलेगी। दूसरे थप्पड़ के जुर्माने का रुपया मैं वापसी पर देता जाऊँगा।”
पहलवान अपने घोड़े पर सवार होकर चलता बना। काजी सिर नीचा किए खड़ा था। उस दिन के बाद काजी और अशरफ दोनों सुधर गए।
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1 टिप्पणी:
कहानी अत्यन्त रोचक एवं शिक्षाप्रद है ।अत्याचार और चालाकी का अन्त कभी अच्छा नहीं होता ।
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