
माली
सींच-सींचकर हर पौधे को
हरा-भरा करता है माली।
रंग-बिरंगे फूलों से नित
बगिया को भरता है माली।
हर पौधे से और पेड़ से
बगिया में होती हरियाली।

तोता
सीटी सुनकर नाच दिखाए
कुतर-कुतर कर फल खा जाए।
टें-टें करके गाता तोता
देख शिकारी झट उड़ जाए।
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•आलू का पार्क– क्रोएशिया के एक कस्बे बेलिसा में एक ऐसा पार्क बनाया जा रहा है, जो पूरी तरह से आलुओं को समर्पित होगा।इस पार्क में आलुओं के पौधों की क्यारियाँ होंगी और आलुओं पर आधारित बच्चों का प्ले पार्क होगा जिसमें आलू के आकार के झूले व घिसरनपट्टी आदि होंगे।
• मानव अस्थियां कंक्रीट से भी मजबूत होती हैं– हड्डियों में एक चरम मजबूती होती है जो दबाव के तहत कंक्रीट से भी जबरदस्त होती है। अगर हड्डी के एक टुकड़े जितना ही कंक्रीट लिया जाए और दोनों पर एक जैसा दबाव बनाया जाए तो हड्डी की बनिस्पत कंक्रीट तेजी से चूरा हो जाएगा।
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• लचकदार चट्टान– ‘इटाकोलूमाइट’ नामक एक सैंडस्टोन(बलुआ पत्थर) पतली पट्टियों में काटने पर इतना लचकदार होता है कि इसे मोड़ा जा सकता है। परंतु यह
इतना कठोर होता है कि इससे चाकुओं की धार लगाई जा सकती है।
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बच्चो, बाँस तो आप सबने अवश्य देखा होगा। नया भवन बनाने के लिए लंबे-लंबे व छोटे बाँसों का प्रयोग होता देखा होगा। हमारे घरों में रखीं अस्थाई सीढियां भी अधिकतर बाँस से ही बनी होती हैं। लेकिन हम अकसर समझ नहीं पाते कि बाँस वनस्पति की किस श्रेणी में आते हैं। बाँस के बारे में अधिकांश लोग यह सोचते हैं कि ये झाड़ी की श्रेणी में आते हैं। इसका कारण यह है कि बाँस एक स्थान पर झुंड के रूप में मिलते हैं। बाँस लंबे होते हैं इसलिए कुछ लोग समझते हैं कि ये पेड़ है। आओ आज इस अजब वनस्पति के बारे में जानें।
बच्चो, वास्तव में बाँस न झाड़ी की श्रेणी में आते हैं न पेड़ की। बाँस तो एक किस्म की घास है। इसकी ऊँचाई 35 मीटर तक तथा मोटाई 40 सेंटीमीटर तक हो सकती है। इसका मुख्य तना जमीन के नीचे रहता है। जमीन के नीचे रहने वाले इस तने से ही शाखाएं निकलती हैं। इन शाखाओं के कारण ही हमें बाँस का झुंड नजर आता है। यानि बाँस तो घास का एक तिनका है। बाँस के बढ़ने की गति बहुत तेज होती है। एक दिन में बढ़ने की इसकी गति 40 से 90 सेंटीमीटर तक देखी गई है। बाँस के कुछ पौधे हर वर्ष फैलतें हैं, कुछ पौधे 30 से 100 वर्ष तक भी फैलते हैं। फैलने के बाद बाँस का पौधा मर जाता है। इसके बीजों से नए पौधे उग आते हैं।
बाँस की अनेक किस्में होती हैं। वैज्ञानिक इसकी लगभग 600 किस्मों का अध्ययन कर चुके हैं। सभी किस्म के बाँसों के तने चिकने और जोड़दार होते हैं। इससे ये तने सख्त और मजबूत हो जाते हैं। बाँस सबसे अधिक दक्षिण-पूर्व एशिया, भारतीय उप-महाद्वीप और प्रशांत महासागर के द्वीपों पर पाए जाते हैं।
बाँस हमारे लिए बहुत उपयोगी हैं। इसका प्रयोग मकान, मकान की छतों, झोंपड़ियों व दीवारों के निर्माण में होता है। इससे चटाइयाँ तथा टोकरियाँ भी बनाई जाती हैं। जापान में इसको भीतर से साफ कर पानी की पाइप के रूप में भी प्रयोग करते हैं। विश्व के कई देशों में इसका सब्जी के रूप में भी प्रयोग होता है। इसकी शाखाएं दवाइयां बनाने के काम भी आती हैं।
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रामनगर नाम का एक राज्य था। उसे पड़ोस के राज्य से आक्रमण का खतरा रहता था। रामनगर के सेनापति के पास बहुत ही अच्छी नस्ल का एक घोड़ा था। घोड़े की बहुत अच्छी तरह से देखभाल होती थी। उसे बहुत अच्छा आहार खाने को दिए जाता। उसे रोज खूब दौड़ाया जाता। घोड़ा थोड़ा-सा भी बीमार होता तो दूसरे राज्य से वैद्य को बुलाकर इलाज करवाया जाता।
जब बहुत दिनों तक रामनगर पर दूसरे राज्य ने आक्रमण नहीं किया तो सेनापति ने अपने घोडे की ओर ध्यान देना बंद कर दिया। उसे पौष्टिक आहार भी नहीं दिया जाता। उसे रोज दौड़ाना बंद कर दिया गया। उसे घर के कामों में प्रयोग किया जाने लगा। बीमार होने पर उसकी ओर अधिक ध्यान भी नहीं दिया जाता। धीरे-धीरे वह घोड़ा मात्र भार ढ़ोने वाला साधारण घोड़ा बनकर रह गया।
अचानक एक दिन पड़ोसी राजा ने रामनगर पर आक्रमण कर दिया। सेनापति ने अपने घोड़े को तैयार कर उसे दौड़ाना चाहा, पर घोड़ा दौड़ नहीं पाया। सेनापति ने घोड़े से पूछा, “आज तुझे क्या हुआ है, दौड़ क्यों नही रहा?”
घोड़ा बोला, “अब मैं केवल भार उठाने लायक रह गया हूँ, युद्ध के लिए काम नहीं आ सकता।”
तब सेनापति को समझ आया कि उसकी लापरवाही के कारण ही घोड़ा बेकार हो गया। काश वह उसकी ओर सदा ध्यान देता, उसे पौष्टिक आहार देता, रोजाना दौड़ाता तो ऐसी स्थिति कभी नहीं आती।
किसी भी काम को पूरे सामर्थ्य से करने के लिए लगातार परिश्रम करना बहुत आवश्यक है।
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