बच्चो, रसगुल्ले का नाम सुनकर सभी के मुँह में पानी भर आता है। रसगुल्ले को मिठाइयों का राजा कहा जा सकता है। यह तो आप जानते ही होवोगे कि रसगुल्ला एक बंगाली मिठाई है। आज आपको इस के जन्म की रोचक कथा सुनाती हूँ।
बात सन् 1858 ई. की है। कोलकाता (उन दिनों-कलकत्ता) में सुतापुट्टी के समीप एक हलवाई की दुकान पर नवीनचंद्र दास नाम का एक लड़का काम करता था। चार-पाँच वर्षों तक जब मालिक ने नवीनचंद्र का वेतन नहीं बढ़ाया तो उसने नौकरी छोड़ दी।
फिर नवीनचंद्र ने कोलकाता के एक सुनसान-से इलाके कालीघाट में अपनी ही दुकान खोल ली। सुनसान इलाके के कारण दुकान में बिक्री अधिक नहीँ होती थी। दुकान में अक्सर छेना बच जाता। नवीनचंद्र उस छेने के गोले बनाकर चाशनी मे पका लेता। लेकिन उसकी यह मिठाई बिकती नहीं थी। नवीन यह मिठाई अपने दोस्तों को मुफ्त में खिला देता। अपनी पसंद की मिठाई के न बिकने के कारण वह दुखी भी होता।
बात सन् 1866 ई. की है। एक दिन उसकी दुकान के सामने एक सेठ की बग्घी आकर रुकी। सेठ का नौकर दुकान पर आया और बोला, “छोटे बच्चों के लिए कोई नर्म-सी मिठाई दे दो।”
नाम लेकर तो मिठाई माँगी नही गई थी, इसलिए नवीनचंद्र ने उसे अपनी वही मिठाई दे दी।
बच्चों को मिठाई बहुत पसंद आई। वे मिठाई खाकर बहुत खुश हुए। उन्होंने वही मिठाई और मंगवाई। सेठ की भी इच्छा हुई कि इस नई मिठाई का नाम जाना जाए, जिसे बच्चों ने इतना पसंद किया है।
नौकर ने आकर नवीनचंद्र से मिठाई का नाम पूछा तो वह घबरा गया। रस में गोला डालकर बनाता था मिठाई, इसलिए कह दिया, “रस-गोला।”
नौकर ने कहा, “सेठ जी अभी अपने बाग में जा रहे हैं, वापसी पर एक हांडी रस-गोला घर ले जाएंगे, तैयार रखना।”
नवीनचंद्र दास रस-गोले की पहली बिक्री से बहुत प्रसन्न था। रस-गोले के पहले ग्राहक भारत के बहुत बड़े व्यापारी थे, नाम था भगवान दास बागला। इतने बड़े व्यापारी के ग्राहक बन जाने से ‘रस-गोला’ की बिक्री तेजी से बढ़ने लगी। केसर की भीनी-भीनी खुशबू वाला रस-गोला तो लोगों को बहुत भाया।
समय के साथ ‘रस-गोला’ का नाम बिगड़कर ‘रसगुल्ला’ हो गया। इसमें बहुत कुछ नया भी हुआ। अब तो राजस्थान के रसगुल्ले, सपंजी रसगुल्ले भी बहुत पसंद किए जाते हैं।
जिस मिठाई को प्रारंभ में कोई नही खरीदता था, आज वह भारत में ही नहीं विदेशों में भी बहुत पसंद की जाती है।
******
13 टिप्पणियां:
मुँह मे पानी आ गया। अच्छी जानकारी है। आभार्
वाह मुह में पानी आ गया रसगुल्ला की कहानी पढकर
रसगुल्ले का इतिहास जानकर बहुत सुखद अनुभूति हुई.... बहुत अच्छे से और समझाने वाले में अंदाज़ में लिखा है आपने.... लेखन शैली भी बहुत अच्छी लगी....
थैंक्स एंड रिगार्ड्स....
बनाने की विधि तो आपने बता ही दी कभी खाने हो तो हमारे बीकानेर आइये ,बहुत ही स्वादिष्ट रसगुल्ले खाने को मिलेंगे...
भाई रजनीश जी,
आपके निमंत्रण के लिए धन्यवाद। रसगुल्ला के निर्माता नवीनचंद्र दास जहाँ बंगाल से थे वहीं इस के प्रथम कद्रदान भगवान दास बागला जी राजस्थान से थे। शायद यही कारण हो कि कोलकाता के बाद स्वादिष्ट रसगुल्लों के लिए राजस्थान के बीकानेर का नाम ही सामने आता है।
मनभावन होने के कारण
चर्चा मंच पर
ख़ुशबू के छोड़ें फव्वारे!
शीर्षक के अंतर्गत
इस पोस्ट की चर्चा की गई है!
अच्छी जानकारी। बीकानेर के रसगुल्लों का भी जवाब नहीं है।
dilchasp jankari
आपकी सुन्दर पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है!
--
http://mayankkhatima.blogspot.com/2010/06/3.html
मेरा प्यारा रसगुल्ला ...मजेदार जानकारी..बधाई.
________________
'पाखी की दुनिया' में 'पाखी का लैपटॉप' जरुर देखने आयें !!
maza aa gaya..radgulle ki kahani padh kar.
shadi,utsaw,janm diwas ho ya koi bhi
halla-gulla.
muh mitha karna ho jab bhi kaam aaye
sawadist rasgulla.
mazedar post
हमें तो पता भी नहीं था की रसगुल्ला बंगाली मिठाई है...बहुत सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है..अब तक तो हम इसे बीकानेर की ही मिठाई समझ रहे थे. .. .बधाई....हमने आपके प्यारे ब्लॉग को अपने ब्लॉग से लिंक भी कर रखा है..समय निकल कर ज़रूर देखिएगा...
mai vi bangali hu or mujhe vi rasgula pasand hai
एक टिप्पणी भेजें