गिरीश पंकज
कितनी प्यारी होली है।
मीठी -मीठी बोली है।
तरह-तरह के रंग मिले,
भर गई अपनी झोली है।।
(2)
(3)
डैडी इक पिचकारी लाओ,
मम्मी जी पर डालो रंग।
ये करना है, वो करना है,
कर देती है मुझको तंग।
(4)
बुरा न मानो होली है ।
बच्चो की यह टोली है।
रंग लगाओ खुलकर सबको,
दीदी हमसे बोली है।
बुरा न मानो होली है…
(5)
बन्दर जैसे लाल हो गए।
हम भी अरे कमाल हो गए।
होली में खा कर रसगुल्ले,फूले-फूले गाल हो गए।।
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3 टिप्पणियां:
मंगल-मिलन "होली" की हार्दिक शुभकामनाएं
किस धागे से सिलूँ
अपना तिरंगा
कि कोई उसकी
हरी और केसरी पट्टियाँ उधाड़कर
अलग अलग झँडियाँ बना न सके
होली की शुभकामनाएं
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