शनिवार, 19 दिसंबर 2009

गिलहरी का दोस्त जिराफ













नन्हीं गिलहरी को मिला,
बहुत अच्छा दोस्त जिराफ।
लंबी गरदन झुका के अपनी,
उसे जीभ से करता साफ।


पाकर ऐसे दोस्त को,
गिलहरी फूली नहीं समाए।
तभी तो बीच सड़क पर,
ठुमक-ठुमक चली जाए।
*****

4 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

bahut achha

Randhir Singh Suman ने कहा…

nice

सहज साहित्य ने कहा…

गिलहरी और ज़िराफ़ की बेजोड़ दोस्ती को सहज -सरल भाषा में व्यक्त करना कठिन काम है , जिसको अग्रवाल जी ने सहजग्राह्य बना दिया है ।

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…

"अविस्मरणीय फ़ोटो और अनूठी कविता!"

ओंठों पर मधु-मुस्कान खिलाती, रंग-रँगीली शुभकामनाएँ!
नए वर्ष की नई सुबह में, महके हृदय तुम्हारा!

संपादक : "सरस पायस"