शनिवार, 8 जनवरी 2011

ठुर-ठुर करती सर्दी आई

बर्फ जो गिरी पहाड़ पर

मैदान हो गए शीत।

ठुर-ठुर करते दादाजी के

दाँत भी गाएँ गीत।


सिर पर चढ़ बैठी है टोपी

बदन को ढ़के स्वीटर।

चाय-पकौड़ी, मुँगफली

संग चलता है हीटर।



सूरज निकला ओढ़ रजाई

गरमी-सा रहा न रूप।

दादी निकली, गई कई घर

पर ढूँढी मिली न धूप।

-0-

कोई टिप्पणी नहीं: