बुधवार, 26 मई 2010

ए फार एप्पल




हमारे
स्कूलों में लगभग सभी बच्चे अपनी अंग्रेजी भाषा की शिक्षा ‘ए फार एप्पल’ से ही शुरु करते हैं। वैसे भी हम भारतीयों को आम के बाद जो फल अधिक भाता है, वह सेब ही है। कश्मीर और हिमाचल प्रदेश अपने लाल-रसीले सेबों के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं। लेकिन बच्चो, आपको यह जान कर आश्चर्य होगा कि सेब भारतीय फल नहीं है। आज से सौ वर्ष पहले भारत में सेब की खेती नहीं होती थी।
सेब वास्तव में अमरीकी फल है। इसके भारत में आने की कहानी भी रोचक है। बीसवीं सदी के शुरु की बात है। अमरीका का एक डॉक्टर दंपति भारत के कुष्ठ रोगियों के इलाज के लिए भारत आ रहा था। एक 21 वर्षीय नौजवान सैमुअल इवान स्टोक्स को इस बात का पता लगा। उसने भी इस दंपति के साथ काम करने की ठान ली। फरवरी 1904 में वह डॉक्टर दंपति के साथ भारत आ गया। भारत का गरम मौसम सैमुअल को रास नहीं आया। वह बीमार रहने लगा। इस लिए उसे शिमला भेज दिया गया। शिमला में वह कुष्ठ रोगियों के लिए बने एक घर में काम करने लगा। कुष्ठ रोगियों के साथ-साथ सैमुअल गाँव वालों की मदद भी करता था। वहाँ उसने एक पहाड़ी लड़की से शादी कर ली।
उस समय तक भारत में सेब पैदा नहीं होते थे। यहाँ पर सेब जापान और इंगलैंड से मंगवाए जाते थे। 1915 में सैमुअल को अमरीका जाने का अवसर मिला। वहाँ उसे लुसियाना की एक नर्सरी में उगाए जाने वाले रेड डिलिशियस सेबों के बारे में पता चला। सैमुअल इन सेबों की कुछ किस्में अपने साथ भारत ले आया। उसने इन्हें अपने बागों में लगा दिया।

अमरीकी सेबों को हिमाचल प्रदेश का मौसम पसंद आ गया। फिर तो और बागों में भी सेब के पेड़ लग गए। लगभग
10 वर्ष बाद भारत में पैदा हुए सेब बाजार में मिलने लगे। लाल मीठे और रसीले सेबों को लोगों ने बहुत पसंद किया। उन दिनों गाँव वाले आलू तथा आलूबुखारे की खेती ही अधिक करते थे। सेब की मांग बढ़ी तो गाँव वालों ने इनकी खेती करनी शुरु कर दी। सैमुअल के भरपूर सहयोग से हिमाचल प्रदेश के बड़े भाग में सेब की खेती होने लगी।
सैमुअल ने भारत के स्वतंत्रता-संग्राम में भी भाग लिया। पता ही नहीं चला वह कब अमरीकी से भारतीय हो गया। इसी तरह सेब के भी अमरीकी से भारतीय फल हो जाने का भी पता नहीं चला।
बच्चो, अब जब भी सेब खाओ सैमुअल को अवश्य याद करना।
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शनिवार, 22 मई 2010

किसान की बेटी




श्याम सुन्दर अग्रवाल


बहुत
समय पहले की बात है। एक गाँव में एक किसान रहता था। उस किसान की एक जवान बेटी थी। उसकी नाम था– रूपा। रूपा बहुत ही सुंदर लड़की थी। वह मेहनती भी बहुत थी। वह खेत में अपने पिता के साथ काम करती और घर में माँ के साथ। उसके लिए आराम हराम था। वह सारा दिन किसी न किसी काम में लगी रहती।
एक दिन उस देश का राजकुमार उस गाँव से होकर जा रहा था। राजकुमार की नज़र रूपा पर पड़ी। उसने रूपा जैसी सुंदर लड़की पूरे देश में नहीं देखी थी। वह रूपा पर मुग्ध हो गया। रूपा के पीछे-पीछे चलता हुआ वह उसके घर पहुँचगया।

राजकुमार ने किसान से कहा, “मैं इस देश का राजकुमार हूँ। मैं आपकी बेटी से विवाह करना चाहता हूँ।”
किसान ने पूछा, “क्या तुमने मेरी बेटी रूपा से बात कर ली है?”
राजकुमार ने कहा, “नहीं।”
“तब अच्छा होगा यदि तुम पहले रूपा से ही पूछ लो।” किसान बोला।
राजकुमार रूपा के पास गया और बोला, “मैं इस देश का राजकुमार हूँ। मैं तुम्हारे साथ विवाह करना चाहता हूँ।”
रूपा ने पूछा, “क्या तुम कोई काम करना जानते हो?”
राजकुमार बहुत हैरान हुआ। उसने कहा, “मुझे काम करने की क्या जरूरत है। मैं राजकुमार हूँ और मेरे पास किसी वस्तु की कोई कमी नहीं है।”
रूपा बोली, “मैं तुम्हारे साथ विवाह के बारे में तभी विचार कर सकती हूँ, जब तुम मेरे खेत में स्वयं हल चलाओ जाओ, हल और बैल ले जाओ और खेत में हल चलाओ।”
राजकुमार हल और बैल लेकर खेत में चला गया। वह किसान से हल चलाना सीखने लगा। पहले तो उसे हल पकड़ना भी कठिन दिखाई दिया। उसके नर्म हाथों में छाले पड़ गए, परंतु उसने साहस नहीं छोड़ा। कुछ ही दिनों में उसने पूरा खेत जोत दिया।
राजकुमार जब रूपा के पास गया तो उसने कहा, “पहले तुम खेत में बीज बोकर आओ, मैं फिर तुम्हारे साथ बात करूँगी।”
राजकुमार बीज बोने चला गया। बीज बोने के बाद जब वह रूपा के पास पहुँचा तो वह बोली, “फसल को पानी दो।जानवरों और पक्षियों से इसकी रक्षा करो। तुम फसल के पकने तक प्रतीक्षा करो। जितनी बढ़िया फसल होगी, उतना ही बढ़िया तुम्हें फल मिलेगा।”
परिश्रम करता हुआ राजकुमार फसल के पकने की प्रतीक्षा करने लगा। जब फसल पक कर तैयार हो गई तो वह फिर रूपा के पास गया।
रूपा ने कहा, “आओ, हम दोनों मिलकर फसल की कटाई करें।”
चिलचिलाती धूप में राजकुमार रूपा के साथ मिलकर फसल काटता रहा। धूप में उसका रंग ताँबे-सा हो गया। उसके हाथ बहुत सख्त हो गए।
फसल काटने के बाद उन्होंने मिलकर उसे खलिहान तक पहुँचाया। दाने निकल आए तो उन्हें बैलगाड़ी में लादकर रूपा ने राजकुमार से कहा, “जाओ, इन्हें मण्डी में ले जाकर बेच आओ।”
राजकुमार फसल के रुपये लेकर जब रूपा के पास पहुँचा तो वह बहुत खुश हुई। उसने राजकुमार से कहा, “मुझे तुम्हारे जैसे मेहनती पति की जरूरत थी। निठल्ले राजकुमार का मैं क्या करती।”
दोनों विवाह करने के पश्चात् सुखपूर्वक रहने लगे।
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शनिवार, 15 मई 2010

पक्षियों की अजब-गजब बातें



बाज पक्षी अपने पंखों को लगभग नौ फुट तक फैला सकता

है।



उल्लू अपनी गर्दन को लगभग 270 डिग्री तक घुमा सकता है।





न्युजीलैंड में पाया जाने वाले पक्षी किवी की नज़र कमजोर

होती है, वह केवल 6 फुट की दूरी तक ही देख पाता

है।




आस्ट्रेलिया में पाया जाने वाला पक्षी ऐमू पत्थर लकड़ी सब हज़म कर जाता है।




मादा बुलबुल गाती नहीं है, केवल नर ही गाता है।





अल्बेट्रास नाम का पक्षी आकाश में उड़ते समय ही सो लेता है।

गुरुवार, 6 मई 2010

गरमी के गीत

गिरीश पंकज

(१)
गरमी जी ओ गरमी जी,
क्यों इतनी बेशरमी जी।

पी लो थोड़ा ठंडा पानी,
ले आओ कुछ नरमी जी।
गरमी जी ओ गरमी जी...




(२)
गरमी आयी, गरमी आयी
गोलू जी को मस्ती छाई।
छुट्टी है अब धमाचौकड़ी,
मम्मी जी की आफत आयी।
गरमी आयी,.गरमी आयी...



(३)
सूरज दादा गुस्से में है.
अभी न घर से बाहर जाना.

गरम-गरम थप्पड़ मारेंगे,
बैठ के घर में कुल्फी खाना.





(४)

गरमी से लड़ने वाले हम,
नहीं रहेंगे अब चुपचाप।
पी कर पानी हम निकलेंगे,
देखे क्या कर लेंगे आप?



(५)
इत्ती गरमी, हाय रे दैया
चीख रही देखो गौरैया।
लाओ कटोरा भर दो पानी,
प्यारी-प्यारी मेरी मैया।
इत्ती गरमी, हाय रे दैया...

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