श्याम सुन्दर अग्रवाल
बहुत समय पहले की बात है। एक गाँव में एक किसान रहता था। उस किसान की एक जवान बेटी थी। उसकी नाम था– रूपा। रूपा बहुत ही सुंदर लड़की थी। वह मेहनती भी बहुत थी। वह खेत में अपने पिता के साथ काम करती और घर में माँ के साथ। उसके लिए आराम हराम था। वह सारा दिन किसी न किसी काम में लगी रहती।
एक दिन उस देश का राजकुमार उस गाँव से होकर जा रहा था। राजकुमार की नज़र रूपा पर पड़ी। उसने रूपा जैसी सुंदर लड़की पूरे देश में नहीं देखी थी। वह रूपा पर मुग्ध हो गया। रूपा के पीछे-पीछे चलता हुआ वह उसके घर पहुँचगया।
राजकुमार ने किसान से कहा, “मैं इस देश का राजकुमार हूँ। मैं आपकी बेटी से विवाह करना चाहता हूँ।”
किसान ने पूछा, “क्या तुमने मेरी बेटी रूपा से बात कर ली है?”
राजकुमार ने कहा, “नहीं।”
“तब अच्छा होगा यदि तुम पहले रूपा से ही पूछ लो।” किसान बोला।
राजकुमार रूपा के पास गया और बोला, “मैं इस देश का राजकुमार हूँ। मैं तुम्हारे साथ विवाह करना चाहता हूँ।”
रूपा ने पूछा, “क्या तुम कोई काम करना जानते हो?”
राजकुमार बहुत हैरान हुआ। उसने कहा, “मुझे काम करने की क्या जरूरत है। मैं राजकुमार हूँ और मेरे पास किसी वस्तु की कोई कमी नहीं है।”
रूपा बोली, “मैं तुम्हारे साथ विवाह के बारे में तभी विचार कर सकती हूँ, जब तुम मेरे खेत में स्वयं हल चलाओ जाओ, हल और बैल ले जाओ और खेत में हल चलाओ।”
राजकुमार हल और बैल लेकर खेत में चला गया। वह किसान से हल चलाना सीखने लगा। पहले तो उसे हल पकड़ना भी कठिन दिखाई दिया। उसके नर्म हाथों में छाले पड़ गए, परंतु उसने साहस नहीं छोड़ा। कुछ ही दिनों में उसने पूरा खेत जोत दिया।
राजकुमार जब रूपा के पास गया तो उसने कहा, “पहले तुम खेत में बीज बोकर आओ, मैं फिर तुम्हारे साथ बात करूँगी।”
राजकुमार बीज बोने चला गया। बीज बोने के बाद जब वह रूपा के पास पहुँचा तो वह बोली, “फसल को पानी दो।जानवरों और पक्षियों से इसकी रक्षा करो। तुम फसल के पकने तक प्रतीक्षा करो। जितनी बढ़िया फसल होगी, उतना ही बढ़िया तुम्हें फल मिलेगा।”
परिश्रम करता हुआ राजकुमार फसल के पकने की प्रतीक्षा करने लगा। जब फसल पक कर तैयार हो गई तो वह फिर रूपा के पास गया।
रूपा ने कहा, “आओ, हम दोनों मिलकर फसल की कटाई करें।”
चिलचिलाती धूप में राजकुमार रूपा के साथ मिलकर फसल काटता रहा। धूप में उसका रंग ताँबे-सा हो गया। उसके हाथ बहुत सख्त हो गए।
फसल काटने के बाद उन्होंने मिलकर उसे खलिहान तक पहुँचाया। दाने निकल आए तो उन्हें बैलगाड़ी में लादकर रूपा ने राजकुमार से कहा, “जाओ, इन्हें मण्डी में ले जाकर बेच आओ।”
राजकुमार फसल के रुपये लेकर जब रूपा के पास पहुँचा तो वह बहुत खुश हुई। उसने राजकुमार से कहा, “मुझे तुम्हारे जैसे मेहनती पति की जरूरत थी। निठल्ले राजकुमार का मैं क्या करती।”
दोनों विवाह करने के पश्चात् सुखपूर्वक रहने लगे।
*****
10 टिप्पणियां:
बहुत अच्छी सीख
khoobsurat rachna hai....
कहानी एक बहुत बड़ी सीख दे रही है , नाम नहीं काम की जरुरत है . किसी को चाम नहीं काम प्यारा लगता है
कहानी जीवन में श्रम के महत्त्व को प्रतिपादित करती है ।
Best story i like this
बहुत अच्छा
श्रम के महत्त्व को कहती अच्छी कहानी
आज 22/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर (सुनीता शानू जी की प्रस्तुति में) लिंक की गया हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
एक अच्छी नसीहत देती कहानी जो परिश्रम और आत्मनिर्भरता का सन्देश देती है.
बहुत अच्छा
एक टिप्पणी भेजें