कोयल की आवाज बहुत मीठी होती है। जितनी मीठी उसकी आवाज होती है, उससे कहीं अधिक वह चालाक होती है। अपनी इसी चालाकी से वह कौवों को बेवकूफ बनाती है। अपने अंडों को सेने का काम खुद न कर कौवों से करवाती है।
कौए व कोयल एक ही मौसम में अंडे देते हैं। कौए तथा कोयल के अंडे लगभग एक समान होता हैं। उनमें फर्क करना बहुत कठिन होता है। पता ही नहीं चलता कि कौनसा अंडा कोयल का है और कौनसा कौए का। इसी का फायदा उठा कर कोयल अपने अंडे कौए के घोंसले में रख देती है। कौए उन अंडों को अपने अंडे समझ कर सेते हैं। होते तो कौए भी बहुत चालाक है, पर कोयल उन्हें धोखा देने में सफल रहती है।
कौए के घोंसले में अपने अंडे रखते समय कोयल बहुत सावधानी बरतती है। जब मादा कोयल ने अंडे रखने होते है, तब नर कोयल कौओं को चिढ़ाता है। कौए चिढ़ कर उसका पीछा करते हैं। पीछा करते कौए अपने घोंसले से दूर चले जाते हैं। तब मादा कोयल अपने अंडे कौए के घोंसले में रख देती है। कौओं को शक न हो, इसलिए वह अपने जितने अंडे रखती है, कौओं के उतने ही अंडे घोंसले से उठा कर दूर फेंक आती है। फिर वह एक विशेष आवाज निकाल कर नर कोयल को काम पूरा हो जाने की सूचना देती है। तब नर पीछा करते कौओं को चकमा देकर गायब हो जाता है। फिर कौए कोयल के अंडों को अपने अंडे समझकर सेते रहते हैं।
अंडों में से जब बच्चे निकल आते हैं तो कौए उन्हें अपने बच्चे समझकर पालते हैं। बड़े होने पर कोयल के बच्चे, कौओं को चकमा देकर बच निकलने में सफल हो जाते हैं।
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4 टिप्पणियां:
बहुत महत्त्वपूर्ण जानकारी!
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मेरे मन को भाई : ख़ुशियों की बरसात!
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संपादक : सरस पायस
बहुत पसंद आई
बहुत ही अच्छी जानकारी दी आपने
आज तो सभी चालाक है तो कोयल क्यो नही
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