शुक्रवार, 29 जनवरी 2010

चूहे हुए सयाने




भूख लगी बिल्ली मौसी को
तो वह पूरे गाँव में डोली।
चूहा पास में एक न आया
चाहे कितना भी मीठा बोली।

सभी कोशिशें हुईं फेल तो
नया दाव अपनाया।
चूहों को धोखा देने खातिर
अपने को खूब छिपाया।
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शनिवार, 23 जनवरी 2010

क्या है बाँस?


बच्चो, बाँस तो आप सबने अवश्य देखा होगा। नया भवन बनाने के लिए लंबे-लंबे व छोटे बाँसों का प्रयोग होता देखा होगा। हमारे घरों में रखीं अस्थाई सीढियां भी अधिकतर बाँस से ही बनी होती हैं। लेकिन हम अकसर समझ नहीं पाते कि बाँस वनस्पति की किस श्रेणी में आते हैं। बाँस के बारे में अधिकांश लोग यह सोचते हैं कि ये झाड़ी की श्रेणी में आते हैं। इसका कारण यह है कि बाँस एक स्थान पर झुंड के रूप में मिलते हैं। बाँस लंबे होते हैं इसलिए कुछ लोग समझते हैं कि ये पेड़ है। आओ आज इस अजब वनस्पति के बारे में जानें।

बच्चो, वास्तव में बाँस न झाड़ी की श्रेणी में आते हैं न पेड़ की। बाँस तो एक किस्म की घास है। इसकी ऊँचाई 35 मीटर तक तथा मोटाई 40 सेंटीमीटर तक हो सकती है। इसका मुख्य तना जमीन के नीचे रहता है। जमीन के नीचे रहने वाले इस तने से ही शाखाएं निकलती हैं। इन शाखाओं के कारण ही हमें बाँस का झुंड नजर आता है। यानि बाँस तो घास का एक तिनका है। बाँस के बढ़ने की गति बहुत तेज होती है। एक दिन में बढ़ने की इसकी गति 40 से 90 सेंटीमीटर तक देखी गई है। बाँस के कुछ पौधे हर वर्ष फैलतें हैं, कुछ पौधे 30 से 100 वर्ष तक भी फैलते हैं। फैलने के बाद बाँस का पौधा मर जाता है। इसके बीजों से नए पौधे उग आते हैं।

बाँस की अनेक किस्में होती हैं। वैज्ञानिक इसकी लगभग 600 किस्मों का अध्ययन कर चुके हैं। सभी किस्म के बाँसों के तने चिकने और जोड़दार होते हैं। इससे ये तने सख्त और मजबूत हो जाते हैं। बाँस सबसे अधिक दक्षिण-पूर्व एशिया, भारतीय उप-महाद्वीप और प्रशांत महासागर के द्वीपों पर पाए जाते हैं।

बाँस हमारे लिए बहुत उपयोगी हैं। इसका प्रयोग मकान, मकान की छतों, झोंपड़ियों व दीवारों के निर्माण में होता है। इससे चटाइयाँ तथा टोकरियाँ भी बनाई जाती हैं। जापान में इसको भीतर से साफ कर पानी की पाइप के रूप में भी प्रयोग करते हैं। विश्व के कई देशों में इसका सब्जी के रूप में भी प्रयोग होता है। इसकी शाखाएं दवाइयां बनाने के काम भी आती हैं।

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शनिवार, 16 जनवरी 2010

साहस






फ्रांस
का प्रसिद्ध योद्धा हुआ नेपोलियन। उसने रूस पर आक्रमण करना था। राह में ऐल्पस की दुर्गम पहाड़ियां थीं।ऐल्पस की पहाड़ियों को पार करना बहुत ही कठिन कार्य था। सेनापति ने नेपोलियन से कहा, “ सामने ऐल्पस की पहाड़ियां हैं, उन्हें कैसे पार करेंगे?”
नेपोलियन ने सेनापति की बात की ओर कोई ध्यान नहीं दिया और सेना को आगे बढ़ने का आदेश दिया।
कुछ दिनों पश्चात नेपोलियन ने सेनापति से पूछा, “वे ऐल्पस की पहाड़ियां कहाँ हैं?”
सेनापति ने सिर झुका लिया और कहा, “पीछे रह गई हैं।”
यह नेपोलियन का साहस ही था जिसने पूरी सेना के साथ ऐल्पस की दुर्गम पहाड़ियों को बिना कठिनाई के पार कर लिया।
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शनिवार, 9 जनवरी 2010

सेनापति का घोड़ा


रामनगर नाम का एक राज्य था। उसे पड़ोस के राज्य से आक्रमण का खतरा रहता था। रामनगर के सेनापति के पास बहुत ही अच्छी नस्ल का एक घोड़ा था। घोड़े की बहुत अच्छी तरह से देखभाल होती थी। उसे बहुत अच्छा आहार खाने को दिए जाता। उसे रोज खूब दौड़ाया जाता। घोड़ा थोड़ा-सा भी बीमार होता तो दूसरे राज्य से वैद्य को बुलाकर इलाज करवाया जाता।

जब बहुत दिनों तक रामनगर पर दूसरे राज्य ने आक्रमण नहीं किया तो सेनापति ने अपने घोडे की ओर ध्यान देना बंद कर दिया। उसे पौष्टिक आहार भी नहीं दिया जाता। उसे रोज दौड़ाना बंद कर दिया गया। उसे घर के कामों में प्रयोग किया जाने लगा। बीमार होने पर उसकी ओर अधिक ध्यान भी नहीं दिया जाता। धीरे-धीरे वह घोड़ा मात्र भार ढ़ोने वाला साधारण घोड़ा बनकर रह गया।

अचानक एक दिन पड़ोसी राजा ने रामनगर पर आक्रमण कर दिया। सेनापति ने अपने घोड़े को तैयार कर उसे दौड़ाना चाहा, पर घोड़ा दौड़ नहीं पाया। सेनापति ने घोड़े से पूछा, आज तुझे क्या हुआ है, दौड़ क्यों नही रहा?

घोड़ा बोला, अब मैं केवल भार उठाने लायक रह गया हूँ, युद्ध के लिए काम नहीं आ सकता।

तब सेनापति को समझ आया कि उसकी लापरवाही के कारण ही घोड़ा बेकार हो गया। काश वह उसकी ओर सदा ध्यान देता, उसे पौष्टिक आहार देता, रोजाना दौड़ाता तो ऐसी स्थिति कभी नहीं आती।

किसी भी काम को पूरे सामर्थ्य से करने के लिए लगातार परिश्रम करना बहुत आवश्यक है।

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रविवार, 3 जनवरी 2010

तेज चलती हवा में ठंड क्यों लगती है?



बच्चो, सर्दी का मौसम चल रहा है। सर्दियों में जिस दिन हवा न चल रही हो, आपने राहत महसूस की होगी। हवा न चल रही हो तो कम तापमान पर भी हमारा शरीर अधिक परेशानी नहीं मानता। अगर तेज हवा चल रही हो तो वही ठंड असहनीय लगती है। ऐसा क्यों होता है?
बच्चो, थर्मामीटर का पारा हवा चलने से नीचे नहीं गिरता। ठंड में हवा चलने पर अधिक ठंड लगने का कारण यह हैकि शरीर से (विशेषकर शरीर के खुले भागों से) शांत मौसम के मुकाबले अधिक गर्मी निकल जाती है। हमारे चेहरे तथा शरीर के अन्य अंगों के पास की हवा हमारे शरीर की गर्मी से धीरे-धीरे गर्म हो जाती है। फिर चेहरे तथा शरीर पर लिपटा गर्म हवा का यह कवच शरीर से निकलने वाली गर्मी को रोकता है। यदि हमारे गिर्द हवा स्थिर है तो शरीर के पास की गर्म हवा की परत ठंडी व भारी हवा द्वारा बहुत मंद गति से ऊपर की ओर विस्थापित होती है। जब हवा चलती है तो वह शरीर के पास की गर्म हवा को एकदम से परे हटा देती है तथा ठंडी हवा शरीर को स्पर्श करने लगती है। हवा जितनी तेज होगी, प्रति मिनट उसकी उतनी ही अधिक मात्रा शरीर को स्पर्श करती हुई निकलेगी। इससे हमारे शरीर से प्रति मिनट ताप खोने की मात्रा भी उतनी ही अधिक होगी। इससे शरीर को तेज ठंड महसूस होती है।
तेज हवा के चलने से अधिक ठंड लगने का एक कारण और भी है। हमारी चमड़ी से वाष्प के रूप में नमी निकलती रहती है। इसके वाष्पीकरण के लिए ताप चाहिए। यह ताप हमारे शरीर के समीप की गर्म हवा की परत से मिलता है। यदि हवा स्थिर हो तो वाष्पीकरण की गति मंद होती है। वह इसलिए कि चमड़ी के पास की हवा वाष्प से जल्दही तृप्त हो जाती है। लेकिन अगर हवा तेज चल रही है और हमारी चमड़ी को स्पर्श करती हुई गुजरती है तो वाष्पीकरण की गति अपनी प्रचंडता बनाये रखती है। तब इसके लिए अधिक ताप खर्च होता है, जो हमारे शरीर से ही लिया जाता है। इसलिए भी चलती हवा में हम स्थिर हवा के मुकाबले अधिक ठंड महसूस करते हैं।
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