बुधवार, 30 सितंबर 2009

चमगादड़ उलटे क्यों लटकते हैं?



बच्चो, आपने बाग में से गुजरते हुए वृक्षों पर चमगादड़ों को लटकते हुए देखा होगा। कई बार तो ये एक ही वृक्ष पर बहुत बड़ी संख्या में लटक रहे होते हैं। तब तो ऐसा लगता है मानो वृक्षपर काले रंग के फल लटक रहे हों। चमगादड़ कई और जगह भी लटके हुए दिखाई दे जाते हैं।लेकिन ये कहीं भी लटके हों, सदा उलटे ही लटके होते हैं। चमगादड़ आपको कभी भी सीधा बैठा हुआ दिखाई नहीं दिया होगा। आओ जानें कि चमगादड़ सदा उलटा ही क्यों लटकता है।
चमगादड़ के उलटा लटकने का मुख्य कारण यह है कि इसके पैरों की हड्डियाँ बहुत कमज़ोर होती हैं। इसकी कमजोर हड्डियाँ इसके शरीर का भार उठा या संभाल नहीं पातीं। जब चमगादड़ जमीन पर होते हैं तब अपने शरीर का सारा भार जमीन पर ही डाल देते हैं। ऐसा करने से पैरों पर शरीर का भार बहुत
पड़ता है। तभी नीचे बैठा हुआ चमगादड़ जमीन पर पसरा हुआ दिखाई देता है।
जब चमगादड़ वृक्ष की किसी शाखा पर उलटे लटकते हैं, तब उनके शरीर का भार पैरों पर पड़ कर शरीर की तनी हुई मांसपेशियों और स्नायुओं पर पड़ता है। अपने पैरों को बचाने के लिए ही चमगादड़ वृक्ष पर उलटे लटकते हैं।
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शनिवार, 26 सितंबर 2009

कहानी/ महँगी पड़ी चालाकी


बहुत पुरानी बात है। एक नगर में अशरफ नाम का एक आदमी रहता था। अशरफ बहुत शैतान था। वह लोगों को परेशान करता रहता था। किसी के भी बिना कारण थप्पड़ मार देता। लोग उसकी शिकायत लेकर नगर के काजी के पास जाते। उन दिनों झगड़ों का निपटारा काजी ही किया करते थे। काजी अशरफ का दोस्त था। काजी हेरफेर कर ऐसा निर्णय देता कि अशरफ को कुछ सज़ा नहीं मिल पाती। लोग शरीफ थे, काजी के विरुद्ध कुछ न बोल पाते। काजी से दोस्ती के कारण अशरफ दिन पर दिन और बिगड़ता जा रहा था। वह लोगों से पैसे छीन लेता, दुकान से सामान उठा कर भाग जाता।

एक बार एक पहलवान उस नगर से होकर जा रहा था। थकावट के कारण थोड़ी देर आराम करने लिए वह वहाँ ठहर गया। जब वह सराय के बाहर बैठा था तो अशरफ भी वहाँ आ गया। एक अनजान व्यक्ति पर नज़र पड़ी तो उसका मन चंचल हो उठा। उसने सोचा कि अगर सबके सामने इस पहलवान के एक थप्पड़ लगा दे तो नगर में उसका दबदबा ओर भी बढ़ जाएगा। उसने आगे बढ़ एक जोरदार तमाचा पहलवान की गाल पर जड़ दिया। अचानक पड़ी इस मार से पहलवान बहुत हैरान-परेशान हुआ। उसे गुस्सा तो बहुत आया, पर बेगाने शहर में अशरफ को मारना ठीक नहीं लगा। वह अशरफ को पकड़ कर काजी की कचहरी में ले गया। उसके साथ नगर के कई लोग भी गए।

काजी ने पहलवान की शिकायत सुनी। लोगों ने उसकी गवाही दी। काजी ने अपने दोस्त को बचाने का ढंग सोचा। उसने अशरफ से गुपचुप बात की और फिर सज़ा सुनाई– एक थप्पड़ मारने का जुर्माना एक रुपया। अशरफ पहलवान को एक रुपया देगा।

अशरफ बोला, मेरे पास इस समय तो एक रुपया नहीं है।

काजी बोला, तो ठीक है, जाओ और कहीं से भी एक रुपया लाकर दो।

अशरफ चला गया। लोगों की कानाफूसी सुन, वह जान गया कि काजी ने जानबूझ कर अशरफ को भगा दिया है। उसने सोच लिया कि वह काजी को उसकी चालाकी की सज़ा जरूर देगा। उसने सबके सामने काजी से पूछा, क्या आपके यहाँ किसी के भी एक थप्पड़ मारने की सज़ा एक रुपया जुर्माना ही है?

काजी बोला, हाँ, थप्पड़ किसी के भी मारा गया हो, एक थप्पड़ का जुर्माना एक रुपया।

तब पहलवान आगे बढ़ा और सब लोगों के सामने काजी के मुँह पर एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया। काजी का गाल लाल हो गया। पहलवान बोला, आपका दोस्त अशरफ जुर्माने का जो एक रुपया लायेगा, वह आप रख लेना।फिर उसने काजी के एक थप्पड़ और मारा तथा कहा, मैं कुश्ती लड़ने जा रहा हूँ, वहाँ मुझे इनाम में बड़ी रकम मिलेगी। दूसरे थप्पड़ के जुर्माने का रुपया मैं वापसी पर देता जाऊँगा।

पहलवान अपने घोड़े पर सवार होकर चलता बना। काजी सिर नीचा किए खड़ा था। उस दिन के बाद काजी और अशरफ दोनों सुधर गए।

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शनिवार, 19 सितंबर 2009

पहेलियाँ-4

1. बीच बाजार में सामने सबके,
थैला ले के आया चोर।
बंद दुकान का ताला खोला,
सारा माल ले गया बटोर।

2. गोरा-चिट्टा खूब हूँ,
पर पहनूं नहीं पाजामा।
मां का तो भाई नहीं,
फिर भी बच्चों का मामा।

3. मुझ से बड़ी पेट में उंगली,
सिर पर रखा पत्थर।
गोल-गोल रूप है मेरा,
बूझो जल्दी उत्तर।

4. जितनी ज्यादा सेवा करता,
उतना घटता जाता हूँ।
सभी रंग का नीला-पीला,
पानी के संग भाता हूँ।
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उत्तर: 1. डाक ले जाने वाला 2. चंदा मामा 3. अंगूठी 4. साबुन ।
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शनिवार, 12 सितंबर 2009

मेरी प्यारी दादी-माँ



श्याम सुन्दर अग्रवाल


मेरी प्यारी दादी-माँ,

सब से न्यारी दादी-माँ ।

बड़े प्यार से सुबह उठाए,

मुझको मेरी दादी-माँ ।


नहला कर वस्त्र पहनाए,

खूब सजाए दादी-माँ ।

उठा कर बैग स्कूल का,

मेरे संग-संग जाए दादी-माँ ।


आप न खाए मुझे खिलाए,

ऐसी प्यारी दादी-माँ ।

फलों का जूस, गिलास दूध का,

मुझे रोज पिलाए दादी-माँ ।


सुंदर वस्त्र और खिलौने,

मुझे दिलाए दादी-माँ ।

बात सुनाए, गीत सुनाए,

रूठूँ तो मनाए दादी-माँ ।


यह करना है, वह नहीं करना,

नित्य समझाए दादी-माँ ।

लोरी देकर पास सुलाए,

मेरी प्यारी दादी-माँ ।।

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शनिवार, 5 सितंबर 2009

हाथी के दाँत


बच्चो, शायद हाथी ही एक मात्र ऐसा जानवर है जिसके पास दाँतों के दो सैट होते हैं। एक सैट मुँह के अंदर, एक सैट बाहर। हाथी अपने इन दाँतों से करते क्या हैं? जो पत्ते व ईख वगैरा हाथी भोजन के रूप में खाते हैं, उसे अपने मुँह के भीतर वाले दाँतों से चबाते हैं। मुख के बाहर दिखने वाले दाँत भोजन खाने अथवा चबाने में हाथी की कोई सहायता नहीं करते। तभी तो कहते हैं–‘हाथी के दाँत, खाने के और, दिखाने के और’।
हाथी की सूंड के दोनों ओर दो लंबे दाँत निकले होते हैं। इन्हें ही हम उसके बाहरी दाँत कहते हैं। हाथी के ये दाँत 6 फुट से भी अधिक लंबे हो सके हैं। अफ्रीकी हाथी के दाँत सबसे लंबे होते हैं। अभी तक के रिकार्ड के अनुसार हाथी के सबसे लंबे दाँत की लंबाई 301 सेंटीमीटर रही है।
क्या हाथी के ये दाँत केवल दिखावे के ही होते हैं? बच्चो, शरीर का कोई भी अंग मात्र दिखावे के लिए नहीं होता।शरीर के सभी अंग किसी न किसी काम के लिए बने होते हैं। आओ जानें कि हाथी अपने इन दो बड़े-बड़े दाँतों से क्या काम लेता है।
हाथी के ये दाँत बहुत मजबूत होते हैं। अपने इन दाँतो का प्रयोग वे अपने नन्हें बच्चों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए करते हैं। इन दाँतों से वे भूमि के नीचे की जड़ों को खोदने का काम भी लेते हैं। और ये नुकीले दाँत शत्रु से बचाने में उसकी बहुत मदद करते हैं। इनसे वह अपने शत्रु को घायल कर देता है। हाथी की मौत के बाद ये दाँत मनुष्य के भी बहुत काम आते हैं। इन से बहुत सी सुंदर वस्तुएँ बनती हैं। इसलिए ही ये बहुत कीमती होते हैं
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