शुक्रवार, 31 जुलाई 2009

आज बूझो एक पहेली

बच्चो, आज आपका प्रिय ब्लाग ‘बाल संसार’ अपने जीवन के दो माह पूरे कर रहा है। इन दो महीनों के दौरान हमने आप को विभिन्न तरह की सामग्री देकर आपकी पसंद जानने का प्रयास किया है। यह प्रयास भविष्य में भी करते रहेंगे। इसीलिए आज आपको एक पहेली हल करने के लिए दे रहे हैं। पहेली को शीघ्रता से हल करें और उत्तर बताएं।

पहेली-1
एक परिवार में पाँच सदस्य हैं– रमेश(पिता), सविता(माता) और उनके तीन बच्चे– लोकेश, शैरी और मोहित। आपको इस परिवार के प्रत्येक सदस्य की उम्र बतानी है। आपको कुछ क्लू दे देते हैं:
लोकेश और शैरी की उम्र में जितना अंतर है, उतना ही अंतर शैरी और मोहित की उम्र में है। और उतना ही अंतर है रमेश और सविता की उम्र में।
लोकेश की उम्र को शैरी की उम्र से गुणा कर दिया जाए तो रमेश की उम्र आ जाएगी।
शैरी की उम्र को मोहित की उम्र से गुणा कर देंगे तो जो उत्तर होगा वही सविता की उम्र होगी।

चलो हम आप को एक क्लू और दे देते हैं। परिवार के सभी सदस्यों की कुल उम्र 90 वर्ष है।

क्लू हमने दे दिये, अब आप जल्दी से पहेली हल कर डालो। आपके उत्तर की प्रतीक्षा रहेगी।
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गुरुवार, 30 जुलाई 2009

बादल कैसे बनते हैं?


बच्चो, आजकल बादलों की बहुत चर्चा हो रही है। जहाँ वर्षा नहीं हो रही वहाँ लोग आकाश की ओर देखते हुए बादलों की प्रतीक्षा करते रहते हैं। तरह-तरह के टोटके करते हैं कि बादल आएं और उनके यहाँ मेंह बरसाएं। जहाँ ये लगातार झमाझम बरस रहें हैं, वहाँ बाढ़ की सी स्थिति बन रही है। लोग बादलों को कुछ समय के लिए चले जाने को कह रहे है।

आओ आज बादलों के बारे में जानें। हम जानते हैं कि नदियों, झीलों, तालाबों और सागरों का पानी सूर्य की गरमी से भाप में बदल जाता है। यह भाप वाष्प के रूप में हवा में मिल जाती है। वाष्प मिली गर्म हवा हल्की हो ऊपर आसमान में चली जाती है। जब हवा से भरे वाष्प एक स्थान पर एकत्र होते हैं तो वे धुएं जैसे दिखाई देते हैं। इसे ही बादल कहते हैं। बादल दस प्रकार के होते हैं। परंतु विभिन्न आकारों और आकृतियों के आधार पर इन्हें चार मुख्य भागों में बाँटा गया है।

1) सायरस बादलः सायरस बादल सफेद रंग के होते हैं और पक्षियों के पंखों जैसे दिखाई देते हैं। ये बर्फ के छोटे कणों से बने होते हैं। इनकी ऊँचाई 8000 से 11000 मीटर के बीच होती है।

2) स्ट्रैटस बादलः इन बादलों का निर्माण लगभग 2400 मीटर की ऊँचाई पर होता है। ये धुँध की परतों जैसे दिखाई देते हैं। ये बादल खराब मौसम और बूंदाबांदी के सूचक होते हैं।

3) क्यूमुलस बादलः ये बादल लगभग 1220 से 1525 मीटर की ऊँचाई पर बनते हैं।ये ऊपर से गुंबद जैसे और नीचे से सपाट होते है। ये आकाश में सफेद पहाड़ या कपास के ढ़ेर जैसे दिखाई देते हैं।

4) निम्बोस्ट्रैट्स बादलः ये बादल बहुत कम ऊँचाई पर बनते हैं। ये पानी के नन्हें कणों से बने होते हैं। इनका रंग गहरा भूरा अथवा काला होता है। यही वे बादल हैं जो धरती पर वर्षा करते हैं।

सबसे अधिक ऊँचाई पर बनने वाले बादलों को नाक्टील्यूमैंट बादल कहते हैं। इनकी ऊँचाई 48000 से 80000 मीटर तक हो सकती है।

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बुधवार, 29 जुलाई 2009

एक लोटा पानी



श्याम सुन्दर अग्रवाल
बहुत समय पहले की बात है। एक गाँव में राधा नाम की एक औरत रहती थी। राधा बहुत ही समझदार थी। उसकेपास एक भेड़ थी। भेड़ जो दूध देती, राधा उसमें से कुछ दूध बचा लेती। उस दूध से वह दही जमा लेती। दही सेमक्खन निकाल लेती। छाछ तो वह पी लेती, लेकिन मक्खन से घी निकाल लेती। उस घी को राधा एक मटकी मेंडाल लेती। धीरे-धीरे मटकी घी से भर गई।
राधा ने सोचा, अगर घी को नगर में जा कर बेचा जाए तो काफी पैसे मिल जाएंगे। इन पैसों से वह घर की ज़रूरतका कुछ सामान खरीद सकती है। इसलिए वह घी की मटकी सिर पर उठा कर नगर की ओर चल पड़ी।
उन दिनों आवा-जाही के अधिक साधन नहीं थे। लोग अधिकतर पैदल ही सफर करते थे। रास्ता बहुत लंबा था।गरमी भी बहुत थी। इसलिए राधा जल्दी ही थक गई। उसने सोचा, थोड़ा आराम कर लूँ। आराम करने के लिए वहएक वृक्ष के नीचे बैठ गई। घी की मटकी उसने एक तरफ रख दी। वृक्ष की शीतल छाया में बैठते ही राधा को नींद आगई। जब उसकी आँख खुली तो उसने देखा, घी की मटकी वहाँ नहीं थी। उसने घबरा कर इधर-उधर देखा। उसे थोड़ीदूर पर ही एक औरत अपने सिर पर मटकी लिए जाती दिखाई दी। वह उस औरत के पीछे भागी। उस औरत के पासपहुँच राधा ने अपनी मटकी झट पहचान ली।
राधा ने उस औरत से अपनी घी की मटकी माँगी। वह औरत बोली, “यह मटकी तो मेरी है, तुम्हें क्यों दूँ।”
राधा ने बहुत विनती की, परंतु उस औरत पर कुछ असर न हुआ। उसने राधा की एक न सुनी। राधा उसकेसाथ-साथ चलती नगर पहुँच गई। नगर में पहुँच कर राधा ने मटकी के लिए बहुत शोर मचाया। शोर सुनकर लोगएकत्र हो गए। लोगों ने जब पूछा तो उस औरत ने घी की मटकी को अपना बताया। लोग निर्णय नहीं कर पाए किवास्तव में मटकी किसकी है। इसलिए वे उन दोनों को हाकिम की कचहरी में ले गए।
राधा ने हाकिम से कहा, “हुजूर! इस औरत ने मेरी घी की मटकी चुरा ली है। मुझे वापस नहीं कर रही। कृपया इससेमुझे मेरी मटकी दिला दें। मुझे यह घी बेचकर घर के लिए जरूरी सामान खरीदना है।”
“तुम्हारे पास यह घी कहाँ से आया ? और इसने कैसे चुरा लिया ?” हाकिम ने पूछा।
“मेरे पास एक भेड़ है। उसी के दूध से मैने यह घी जमा किया है। रास्ते में आराम करने के लिए मैं एक वृक्ष कीछाया में बैठी तो मुझे नींद आ गई। तभी यह औरत मेरी मटकी उठा कर चलती बनी।”
हाकिम ने उस औरत से पूछा तो वह बोली, “हुजूर, आप ठीक-ठीक न्याय करें. मैने पिछले माह ही एक गाय खरीदीहै, जो बहुत दूध देती है। मैने यह घी अपनी गाय के दूध से ही तैयार किया है। जरा सोचिए, एक भेड़ रखने वालीऔरत एक मटकी घी कैसे जमा कर सकती है?”
हाकिम भी दोनों की बातें सुनकर दुविधा में पड़ गया। वह भी निर्णय नहीं कर पा रहा था कि वास्तव में घी कीमटकी किसकी है। उसने दोनों औरतों से पूछा, “क्या तुम्हारे पास कोई सबूत है ?”
दोनों ने कहा कि उनके पास कोई सबूत नहीं है।
तब हाकिम को एक उपाय सूझा। उसने दोनों औरतों से कहा, “वर्षा के पानी से कचहरी के सामने जो कीचड़ जमा होगया है, उसमें मेरे बेटे का एक जूता रह गया है। तुम पहले वह जूता निकाल कर लाओ, फिर मैं फैसला करूँगा।”
राधा और वह औरत कीचड़ में घुस कर जूता ढूँढ़ने लगीं। वे बहुत देर तक कीचड़ में हाथ-पाँव मारती रहीं, परंतु उन्हेंजूता नहीं मिला। तब हाकिम ने उन्हें वापस आ जाने को कहा। दोनों कीचड़ में लथपथ हो गईं थीं। हाकिम नेचपरासी से उन्हें एक-एक लोटा पानी देने को कहा, ताकि वे हाथ-पाँव धो कर कचहरी में हाज़िर हो सकें।
दोनों को एक-एक लोटा पानी दे दिया गया। राधा ने तो उस एक लोटा पानी में से ही अपने हाथ-पाँव धो कर थोड़ा-सापानी बचा लिया। परंतु गाय वाली वह औरत एक लोटा पानी से हाथ भी साफ नहीं कर पाई। उसने कहा, “इतनेपानी से क्या होता है! मुझे तो एक बाल्टी पानी दो, ताकि मैं ठीक से हाथ-पाँव धो सकूँ।”
हाकिम के आदेश से उसे और पानी दे दिया गया।
हाथ-पाँव धोने के बाद जब राधा उस औरत के साथ कचहरी में पहुँची तो हाकिम ने फैसला सुना दिया, “घी की यहमटकी भेड़ वाली औरत की है। गाय वाली औरत जबरन इस पर अपना अधिकार जमा रही है।”
सब लोग हाकिम के न्याय से बहुत खुश हुए क्योंकि उन्होंने स्वयं देख लिया था कि भेड़ वाली औरत ने कितनेसंयम से सिर्फ एक लोटा पानी से ही हाथ-पाँव धो लिए थे। गाय वाली औरत में संयम नाम मात्र को भी नहीं था। वहभला घी कैसे जमा कर सकती थी।
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मंगलवार, 28 जुलाई 2009

लिखे को कैसे मिटाता है इरेजर?


शैलेश होमवर्क कर रहा था कि कुछ गलत लिखा गया। गलत लिखे को मिटाने के लिए उसने अपने ज्योमैटरी-बाक्स में से इरेजर लेने को हाथ मारा। मगर इरेजर तो वहाँ था ही नहीं, शायद स्कूल में रह गया था। शैलेश परेशान हो गया। इरेजर तो हर बच्चे के लिए आवश्यक है। बच्चे हो, गलत तो लिखा ही जाता है। इरेजर ही आपकी गलती को मिटाता है। आओ आज देखें कि इरेजर आपके लिखे को मिटाता कैसे है।

आप ये तो जानते ही होंगे कि जिस पेंसिल से आप लिखते हो वह कैसे बनती है। नहीं पता तो हम बता देते हैं। गहरे कार्बन ग्रेफाइट को मिट्टी के साथ मिला कर उससे लैड बनाते हैं। इस लैड को लकड़ी के एक लंबे होल्डर में फिट किया जाता है। फिर उसे आपकी पेंसिल के साइज के टुकड़ों में काट दिया जाता है। रंगीन पेंसिल बनाने के लिए ग्रेफाइट के स्थान पर रंगीन सामान प्रयोग किया जाता है।

हाँ, तो बात कर रहे थे कि इरेजर पेंसिल के लिखे को मिटाता कैसे है? बच्चो, आप जब पेंसिल से कागज पर लिखते हो तो वह कार्बन के कण छोड़ती हुई लिखती जाती है। कार्बन के ये कण लिखे हुए अक्षरों में छिपे होते हैं। यह भी कह सकते हैं कि अक्षर कार्बन के कणों से ही बने होते हैं। इरेजर से रगड़ने पर कार्बन के कण इरेजर की नरम और मुलायम सतह से चिपक जाते हैं। फिर वे इरेजर के कणों के साथ मिल कर कागज पर आ जाते हैं। इरेजर से मिटाने के बाद इन्हीं कणों को आपको कागज पर हाथ फेर कर हटाना पड़ता है। इस तरह पेंसिल का लिखा मिट जाता है।

बच्चो, पेंसिल का लिखा तो साधारण इरेजर से मिट जाता है। लेकिन स्याही से लिखा इससे नहीं मिटता। पेन से लिखने पर कागज स्याही को चूस लेता है। इस लिए इसे मिटाने के लिए रेत वाले इंक-इरेजर का प्रयोग किया जाता है।

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सोमवार, 27 जुलाई 2009

अजब-गजब










• बच्चो, आगरा के ताजमहल और जयपुर के हवामहल के बारे में तो आपने अवश्य सुना होगा। आप में से बहुतों नेइन्हें देखा भी होगा। दोनों में एक समानता है। इन दोनों महलों में कभी किसी राजा या बादशाह का निवास नहीं रहा।
• ताजमहल में तो दो कब्रें हैं, इसलिए वह तो मकबरा ही है। महल तो बस नाम का ही है।









• लाल और गुलाबी बालू-पत्थर से बने हवामहल में सामने की तरफ से कोई प्रवेश-द्वार ही नहीं है। महल में प्रवेशके लिए पिछली तरफ से ही रास्ता है।
• हवामहल में खिड़कियाँ तो 953 हैं, लेकिन कमरे 9 भी नहीं हैं। बस गलियारे ही हैं।
• पाँच मंजिला इस महल में एक भी सीढ़ी नहीं है।
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शनिवार, 25 जुलाई 2009

पुकार










सुबह-सवेरे उठना पड़ता,

फिर रहती है भागमभाग।

थके हुए स्कूल से लौटें,

तब चले ‘होमवर्क’ का राग।


जितना दिन भर पढ़ें स्कूल में,

उससे ज्यादा होमवर्क।

बच्चे कितने दुखी हैं होते,

इससे टीचर को नहीं फर्क।


बच्चे हैं हम, थक जाते हैं,

उठा के भारी बस्ता।

टीचर जी के डंडे का डर,

कर देता हालत खस्ता।


सोम-मंगल तो ठीक से बीतें,

बुध, वीर परेशानी।

शुक्र, शनि की बात न पूछो,

याद आती है नानी।


करनी होती दूर थकावट,

छ: दिन न तड़पाया करो।

‘रविवार’ बच्चों के प्यारे,

दो-तीन दिन में आया करो।

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शुक्रवार, 24 जुलाई 2009

कुत्ते पागल क्यों हो जाते हैं?



कुत्ते लगभग हर जगह होते हैं। उसे मनुष्य का सबसे वफादार मित्र माना जाता है। बहुत से लोग उन्हें पालते भी हैं।लेकिन अगर कहीं कुत्ता पागल हो जाए तो बहुत खतरनाक हो जाता है। पागल कुत्ते द्वारा काटे जाने पर सही व समय पर इलाज जरूरी हो जाता है। ऐसा न होने पर व्यक्ति की मौत भी हो सकती है।
कुत्ता पागल होता कैसे है? वास्तव में जिस कुत्ते को रेबीजनामक रोग हो जाए, उसे ही पागल कुत्ता कहते हैं। रेबीज का रोग एक प्रकार के वायरस के कारण होता है। यह वायरस हवा में से या किसी जंगली जानवर से कुत्ते तक पहुँचता है। कुत्ते की चमड़ी पर हुए किसी घाव द्वारा यह उसके शरीर में प्रवेश कर स्नायु तंत्र तक पहुँच जाता है। यहाँ इस वायरस की संख्या तेजी से बढ़ती है। इससे मस्तिष्क की कोशिकाएँ बुरी तरह प्रभावित होती हैं।
रेबीज से प्रभावित कुत्ते को बुखार रहता है तथा वह सुस्त रहता है। भोजन में भी उसकी रुचि नहीं रहती। चार से छ: सप्ताह में यह वायरस कुत्ते के मस्तिष्क को अपनी चपेट में ले लेता है। तब कुत्ता उत्तेजित हो जाता है। उसके मुख से झाग निकलने लगते हैं। वह जोर-जोर से भौंकता भी है। इस समय वह बिना कारण किसी को भी काट सकता है। यही उसकी पागलपन की स्थिति है। इन लक्षणों के दिखाई देने के बाद कुत्ता एक सप्ताह के भीतर मर जाता है। पागल कुत्ते से बचाव बहुत जरूरी है। अगर कहीं पागल कुत्ता काट ले तो तीन दिन के भीतर डाक्टर की सलाह से एंटी रेबी
टीके लगवा लेने चाहिएं।
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‘ ‘

गुरुवार, 23 जुलाई 2009

बिल्ली की आँखें अंधेरे में चमकती क्यों हैं?


बच्चो, आपने कभी न कभी अंधेरे में बैठी हुई बिल्ली को अवश्य देखा होगा। आपको उसका शरीर तो अंधेरे में दिखाई नहीं दिया होगा। परंतु उसकी चमकती पीली आँखें जरूर दिखाई दी होंगी। सवाल उठता है कि इनकी आँखें अंधेरे में चमकती क्यों हैं?

बिल्ली की आँखों में एक विशेष पारदर्शी द्रव्य की पतली-सी परत होती है। इस परत को ‘ल्यूमिनस टेपटम’ कहते हैं। यह परत अपने पर पड़ने वाली हल्की-सी रोशनी को भी परावर्तित कर देती है। इस परावर्तित (वापस लौटी) रोशनी के कारण ही बिल्ली की आँखें हमें चमकती हुई दिखाई देती हैं। इस परत के कारण ही बिल्ली बहुत कम रोशनी में भी साफ-साफ देख सकती है। बिल्ली के अलावा शेर व बाघ जैसे कई अन्य जानवरों की आँखें भी अंधेरे में चमकती हैं।

विभिन्न जानवरों की आँखों की चमक का रंग भिन्न होता है। ऐसा उनकी आँखों में मौजूद रक्त धमनियों की संख्या पर निर्भर करता है। रक्त धमनियों की संख्या अधिक होगी तो चमक का रंग लाल होगा। यदि रक्त धमनियों की संख्या कम होगी तो चमक का रंग हल्का पीला या सफेद होगा।

ऐसी आँखों वाले जानवर जो अंधेरे में स्पष्ट देख सकते हैं, उन्हें ‘नॉक्टूर्नल’(रत्रिकालिक) कहलाते हैं।

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बुधवार, 22 जुलाई 2009

प्यार का फल



राजा संपत सिंह के मन में कई दिनों से एक सवाल उमड़-घुमड़ रहा था। आखिर एक दिन उन्होंने अपने मंत्री से पूछही लिया, “ दीवान जी, मैं बचपन से देख रहा हूँ कि हमारे राज्य में कुत्ते बहुत पैदा होते हैं। एक कुतिया एक बार मेंसात-आठ बच्चों को जन्म दे देती है। भेड़ें इससे कम बच्चों को जन्म देती हैं। फिर भी भेड़ों के तो झुंड दिखाई देते हैं, परंतु कुत्ते दो-चार ही दिखाई देते हैं। इसका क्या कारण है?”
मंत्री बहुत समझदार था। उसने कहा, “महाराज! इस सवाल का उत्तर मैं आपको कल दूँगा।”
उसी दिन शाम को मंत्री राजा को अपने साथ ले कर एक स्टोर में गया। वहाँ उसने राजा के सामने एक कोठे में बीसभेड़ें बंद करवा दी। भेड़ों के बीच में चारे का एक टोकरा रखवा कर कोठा बंद करवा दिया।
ऐसे ही उसने एक दूसरे कोठे में बीस कुत्ते बंद करवा दिए। कुत्तों के बीच रोटियों से भरी एक टोकरी रखवा दी।
अगली सवेर मंत्री राजा को लेकर उन कोठों की ओर गया। उस ने पहले कुत्तों वाला कोठा खुलवाया। राजा ने देखा किसभी कुत्ते आपस में लड़लड़ कर जख्मी हुए पड़े थे। टोकरी की रोटियां जमीन पर बिखरी पड़ी थीं। कोई भी कुत्ता एकभी रोटी नहीं खा सका था।
फिर मंत्री ने भेड़ों वाला कोठा खुलवाया। राजा ने देखा, सभी भेड़ें एक-दूसरी के गले लगी बड़े आराम से सो रहीं थीं।चारे की टोकरी बिल्कुल खाली पड़ी थी।
तब मंत्री ने राजा से कहा, “महाराज! आपने देखा कि कुत्ते आपस में लड़लड़ कर जख्मी हो गये। वे एक भी रोटी नहींखा सके। परंतु भेड़ों ने बहुत प्यार से चारा खाया और एक-दूसरी के गले लग कर सो गईं। यही कारण है कि भेड़ों कीसंख्या बढ़ती जाती है और वे एक साथ रह सकती हैं। लेकिन कुत्ते एक-दूसरे को सहन नहीं कर पाते। जिस बिरादरीमें आपस में इतनी घृणा हो, वह कैसे तरक्की कर सकती है।”
राजा को अपने सवाल का उत्तर मिल गया था।
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मंगलवार, 21 जुलाई 2009

चाँद पर चढ़ाई



सीढ़ी लगी चाँद तक देखी,

तो चूहे ने करी चढ़ाई।

भूरी बिल्ली दिखी वहाँ तो,

वापस दौड़ लगाई।

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सोमवार, 20 जुलाई 2009

तीन भाई






तीनों
बड़े शरारती,
तीनों सगे हैं भाई।
एक साथ पैदा हुए,
रहती सदा लड़ाई।

चीख-चीख कर करते रहते,
सदा ये जोर अजमाई।
कौन बड़ा और कौन है छोटा,
पहेली सुलझ न पाई।
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रविवार, 19 जुलाई 2009

मुन्ने की नाव










कागज
की नाव
मम्मी ने बनाई।
वर्षा के पानी में
मुन्ने ने चलाई।
तेज-तेज पानी ने
खूब दौड़ाई।
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शनिवार, 18 जुलाई 2009

ओले-ओले, बर्फ के गोले


बच्चो, कई बार वर्षा के दौरान पानी की बूँदों के साथ बर्फ के छोटे-छोटे गोले हैं भी गिरते हैं। इन्हें हम ओले कहते हैं। आओ जानें कि क्यों गिरते हैं ओले?
हम ज्यों-ज्यों सागर की सतह से ऊपर उठते जाते हैं, तापमान कम होता जाता है। तभी तो लोग गरमी के मौसम में पहाड़ों पर जाना पसंद करते हैं। नीचे धरती पर तापमान कितना भी हो, ऊपर आसमान में तापमान शून्य से कई डिग्री कम हो सकता है। पानी को जमा देने वाला। हवा में मौजूद नमी पानी की छोटी-छोटी बूँदों के रूप में जम जाती है। इन जमी हुई बूँदों पर और पानी जमता जाता है। धीरे-धीरे ये बर्फ के गोलों का रूप धारण कर लेती हैं। जब ये गोले वजनी हो जाते हैं तो नीचे गिरने लगते हैं। गिरते समय रास्ते की गरम हवा से टकरा कर बूँदों में बदल जाते हैं। अधिक मोटे गोले जो पूरी तरह नहीं पिघल पाते, वे बर्फ के गोलों के रूप में ही धरती पर गिरते हैं। इन्हें ही हम ओले कहते हैं।
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रेगिस्तान में बादल कम क्यों बरसते हैं?


बच्चो, रेगिस्तान में आपने रेत के बड़े-बड़े टीले देखे होंगे। रेत ही रेत नज़र आती है वहाँ चारों ओर। इस सब का एक कारण वहाँ वर्षा का कम होना भी है। अकसर रेगिस्तान में बादल बहुत कम बरसते हैं। ऐसा क्यों होता है?
विश्व के अधिकतर रेगिस्तान भूमध्य रेखा से कुछ ही दूरी पर हैं। रेगिस्तान से उठने वाली गरम हवा तेजी से चलती है। जब यह हवा भूमध्य रेखा के पास से आने वाली ठंडी हवा से टकराती है तो बादल बनते हैं। नमी से भरे ये बादल जहाँ बनते हैं, वहीं बरस जाते हैं। मतलब, रेगिस्तान से दूर ही ये सारा पानी बरसा देते हैं। पानी बरसाने के बाद नमी रहित ये हवा चारों ओर घूमने लगती है। घूमते-घूमते रेगिस्तान तक भी पहुँच जाती है। लेकिन इस हवा में इतनी नमी नहीं होती कि वहाँ की गरम हवा से मिलकर बादल बनाए। कभी-कभी हवा में कुछ नमी बच जाती है तो थोड़ी-बहुत वर्षा हो जाती है।
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शुक्रवार, 17 जुलाई 2009

मकई के दाने











नभ में देख हजारों तारे,
मुन्ना सोचता रहता।
क्या चीज है, किसकी है?
जवाब खोजता रहता।

ये क्या दादी, मुझे बताओ,
जो ऊपर दिखरे है।
दादी बोली-प्यारे बच्चे,
ये तो मोती बिखरे हैं।

मुन्ना बोला-नहीं ये मोती,
तू माने न माने ।
बिखर गए चंदा-मामा से,
मकई के फूले दाने।
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गुरुवार, 16 जुलाई 2009

गरमियों में नल का पानी ठंडा क्यों होता है?


आपने देखा होगा कि बहुत से लोग नल (हैंडपंप) के ताजा पानी से नहाना पसंद करते हैं। उन्हें गरमियों में नल का पानी ठंडा लगता है तथा सर्दियों में कोसा। गरीब लोग तो अक्सर ही गरमियों में नल चला कर ताजा पानी निकाल कर पीते हैं। वह ताजा पानी उन्हें ठंडा लगता है।

ऐसा क्यों होता है कि गरमियों में धरती के भीतर से निकलने वाला पानी ठंडा हो जाता है तथा सर्दियों में गरम? आओ इसका कारण जानें।

हमारी पृथ्वी ताप की बहुत ही बुरी चालक है। इसकी गहराई में बाहरी तापमान में आए बदलाव का प्रभाव बहुत ही मंद गति से पड़ता है। मान लो कि अगर आज पृथ्वी के ऊपर का तापमान 35 डिग्री सैल्सियस से 40 डिग्री सैल्सियस हो जाता है तो इस तापमान को धरती के नीचे तीन मीटर की गहराई तक पहँचने में लगभग 76 दिन का समय लग जायेगा। अगर धरती के ऊपर का तापमान 35 डिग्री सैल्सियस से 30 डिग्री सैल्सियस हो जाता है तो तीन मीटर की गहराई पर इसका प्रभाव लगभग 108 दिन में पड़ेगा। इससे आगे की गहराई तक पहुँचते इस प्रभाव की गति और भी धीमी हो जाती है। बहुत अधिक गहराई तक तो यह प्रभाव जाता ही नहीं।

इस तरह हम कह सकते हैं कि धरती के ऊपर तापमान में आई तबदीली, धरती की बहुत गहराई (जहाँ से हम नल द्वारा पानी निकालते हैं) तक असर नहीं करती। वहाँ शताब्दियों तक तापमान स्थिर रहता है। पैरिस की एक वेधशाला के नीचे 28 मीटर की गहराई पर लगभग दो सौ वर्षों से एक थर्मामीटर रखा हुआ है। इस थर्मामीटर का पारा अभी तक अपने स्थान से जरा-सा भी नहीं हिला। वह सदा ही एक-सा तापक्रम (+11.7 डिग्री सैल्सियस) दर्शाता है।

इससे तो यही सिद्ध हुआ कि किसी भी मौसम में नल द्वारा जमीन से निकलने वाले पानी का तापमान एक जैसा ही होता है। बाहरी तापमान में आई तबदीली के कारण ही यह हमें गरमियों में ठंडा तथा सर्दियों में कोसा लगता है। गरमियों में धरती के ऊपर का तापमान बहुत अधिक हो जाता है, जिससे हमारा शरीर गरमी महसूस करता है। नल के पानी का तापमान बाहरी तापमान के मुकाबले कम होता है, इसलिए ही वह ठंडा लगता है।

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मंगलवार, 14 जुलाई 2009

हाथी जी की कार


















हाथी जी ने फोन मिलाया,

कार बनाने वालों को।

जल्दी से एक कार बना दो,

बिठा सकूँ घरवालों को।


थोड़ा-सा पैट्रोल वह खाए,

हो खूब तेज रफ्तार।

सुंदर हो, मजबूत भी हो,

पर सस्ती-सी हो कार।

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बिन बरसे क्यों भागें बादल?


बरसात के मौसम में हमारी निगाहें आकाश की ओर ही लगी रहती हैं। आकाश में थोड़े से भी काले बादल दिखाई देते हैं तो हमारा मन खुशी से भर उठता है। बारिश की आस बंधती है। कई बार ऐसा होता है कि आसमान काले-काले बादलों से भर जाता है। लगता है, अभी तेज वर्षा होगी, लेकिन बादल एक बूँद पानी बरसाए बिना ही गायब हो जाते हैं। ऐसा क्यों होता है? बरसाती बादलों में बहुत ही सूक्ष्म जलकण मौजूद होते हैं। ठंडी हवा के संपर्क में आने से इन जलकणों का आकार बढ़कर बूँदों का रूप धारण कर लेता है। बूँदें भारी होने के कारण वर्षा के रूप में धरती पर गिरने लगती है। इसलिए जिस स्थान की हवा ठंडी होती है वहाँ अधिक वर्षा होती है। जहाँ पर बादलों के नीचे की हवा गरम होती है, वहाँ बादलों में मौजूद जलकण फिर से वाष्प में बदल जाते हैं और बादल बिन बरसे ही चले जाते हैं।

इसलिए ही तो कहते हैं कि अपनी धरती पर वृक्ष लगाकर उसे हरी-भरी रखो। धरती हरी-भरी होगी तो बादल खूब बरसेंगे।

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सोमवार, 13 जुलाई 2009

हाथी और कार







हाथी ने एक रोक ली,
बीच सड़क पर कार।
बोला, मुझे बिठाओ भीतर ,
जाना है हरिद्वार।

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रविवार, 12 जुलाई 2009

सयानी बिल्ली









बिल्ली
रानी हुई सयानी
पढ़ कर अ-आ-ई।
मास्टर जी ने उसे सिखाया,
साफ तू पानी पी।
***

शनिवार, 11 जुलाई 2009

हाथी जी









प्यारे
-प्यारे हाथी जी,
बन जाओ मेरे साथी जी।

झुक कर मुझ से हाथ मिलाओ,
पीठ पर अपनी मुझे बिठाओ।

घर पर तुम्हें ले जाऊँगा,
बच्चों को डराऊँगा।
*****

शुक्रवार, 10 जुलाई 2009

बरसा पानी



देखो-देखो कितना पानी,

आसमान से आया।

छोटा मन्नू बैठ साइकिल पे,

मेंह में खूब नहाया।

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गुरुवार, 9 जुलाई 2009

स्वर्ग का चाचा










बहुत पहले की बात है। धरती पर दो वर्षों तक बिल्कुल वर्षा नहीं हुई। अकाल पड़ गया।
अपने तालाब को सूखता देख कर मेंढ़क को चिंता हुई। उसने सोचा, अगर ऐसा रहा तो वह भूखा मर जाएगा। उसने सोचा कि इस अकाल के बारे स्वर्ग में जाकर वहाँ के राजा को बताया जाए।
साहस कर मेंढ़क अकेला ही स्वर्ग की ओर चल पड़ा। राह में उसे मधुमक्खियों का एक झुण्ड मिला। मक्खियों के पूछने पर उसने बताया कि भूखे मरने से अच्छा है कि कुछ किया जाए। मक्खियों का हाल भी अच्छा नहीं था। जब फूल ही नहीं रहे तो उन्हें शहद कहाँ से मिलता। वे भी मेंढ़क के साथ चल दीं।
आगे जाने पर उन्हें एक मुर्गा मिला। मुर्गा बहुत उदास था। जब फसल ही नहीं हुई तो उसे दाने कहाँ से मिलते। उसे खाने को कीड़े भी नहीं मिल रहे थे। इसलिए मुर्गा भी उनके साथ चल दिया।
अभी वे सब थोड़ा ही आगे गये थे कि एक खूँखार शेर मिल गया। वह भी बहुत दुखी था। उसे खाने को जानवर नहीं मिल रहे थे। उनकी बातें सुन कर शेर भी उनके साथ हो लिया।
कई दिनों तक चलने के बाद वे स्वर्ग में पहुँचे। मेंढ़क ने अपने सभी साथियों को राजा के महल के बाहर ही रुकने को कहा। उसने कहा कि पहले वह भीतर जाकर देख आए कि राजा कहाँ है।
मेंढ़क उछलता हुआ महल के भीतर चला गया। कई कमरों में से होता हुआ वह राजा तक पहुँच ही गया। राजा अपने कमरे में बैठा परियों के साथ खेल रहा था। मेंढ़क को क्रोध आ गया। उसने लंबी छलांग लगाई और उनके बीच पहुँच गया। परियाँ एकदम चुप कर गईं। राजा ने एक छोटे से मेंढ़क की करतूत देख गुस्सा आ गया।
“पागल जीव! तुमने हमारे बीच आने का साहस कैसे किया?” राजा चिल्लाया। परंतु मेंढ़क बिल्कुल नहीं डरा। उसे तो धरती पर भी भूख से मरना था। जब मौत साफ दिखाई दे तो हर कोई निडर हो जाता है।
राजा फिर चीखा। पहरेदार भागे आए ताकि मेंढ़क को पकड़ कर महल से बाहर निकाल दें। मगर इधर-उधर उछलता मेंढ़क उनकी पकड़ में नहीं आ रहा था। मेंढ़क ने मधुमक्खियों को आवाज दी। वे सब भी अंदर आ गईं। वे सब पहरेदारों के चेहरों पर डँक मारने लगीं। उनसे बचने के लिए सभी पहरेदार भाग गए।
राजा हैरान था। तब उसने तूफान के देवता को बुलाया। पर मुर्गे ने शोर मचाया और पंख फड़फड़ा कर उसे भी भगा दिया। तब राजा ने अपने कुत्तों को बुलाया। उनके लिए भूखा खूँखार शेर पहले से ही तैयार बैठा था।
अब राजा ने डर कर मेंढ़क की ओर देखा। मेंढ़क ने कहा, “महाराज! हम तो आपके पास प्रार्थना करने आए थे। धरती पर अकाल पड़ा हुआ है। हमें वर्षा चाहिए।”
राजा ने उससे पीछा छुड़ाने के लिए कहा, “अच्छा चाचा! वर्षा को भेज देता हूँ।”
जब वे सब साथी धरती पर वापस आए तो वर्षा भी उनके साथ थी। इसलिए वियतनाम में मेंढ़क को ‘स्वर्ग का चाचा’ कह कर पुकारा जाता है। लोगों को जब मेंढ़क की आवाज सुनाई देती है वे कहते हैं, “चाचा आ गया तो वर्षा भी आती होगी।”
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मंगलवार, 7 जुलाई 2009

फैशन का बुखार


श्याम सुन्दर अग्रवाल








टीवी देख चुहिया को चढ़ गया,

फैशन का तेज बुखार ।

चूहे से वह कड़क के बोली,

मुझे लेकर चलो बाज़ार ।


फैंसी वस्त्र, सुंदर गहने,

मुझको तुम बनवा दो ।

फैशन शो में जाऊँगी मैं,

सबको तुम बतला दो ।।


तंग वस्त्र जब पहन चली,

तो राह में लग गया जाम ।

फैंसी सैंडल धोखा दे गये,

वह सड़क पर गिरी धड़ाम।


हाथ-पाँव तुड़वाकर दोनों,

वह जा पहुँची अस्पताल ।

दो टीके जब लगे शरीर पर,

तो बुरा हो गया हाल ।

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रविवार, 5 जुलाई 2009

रविवार












रविवार का दिन है प्यारा,
आज हमारी छुट्टी है।
नहीं यूनिफार्म से दोस्ती,
स्कूल-बैग से कुट्टी है।

मारेंगे मित्रों संग मस्ती,
मन-पसंद का खाएंगे।
झूम-झूम कर नाचेंगे हम,
गीत खुशी के गाएंगे।

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शुक्रवार, 3 जुलाई 2009

आओ शोर मचाएँ







बड़ा मजा आता है हमको,
हम तो शोर मचाएँगे,
पता है आकर टीचर जी,
हमको डाँट लगाएँगे।

करें नहीं शरारत कोई,
न हीं शोर मचाएँ।
चुप बैठना खेल बड़ों का,
हम कैसे समय बिताएँ?
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गुरुवार, 2 जुलाई 2009

बच्चों का पेड़









आँगन
में जो पेड़ नीम का,
मीठा उसे बना दो।
भगवन सुन लो बच्चों की तुम,
फलों से उसे सजा दो।

एक डाल पर लगें संतरे,
एक डाल पर लीची-आम।
मीठे केले लगा नीम पर,
करो उसे बच्चों के नाम।
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