मंगलवार, 30 जून 2009

वर्षा आई



काले-काले बादल आए,
छाई घटा घनघोर।
चमक-चमक के बिजली गरजी,
खूब मचाया शोर।

लगी चहकने चिड़िया रानी,
नाची खूब गिलहरी।
बच्चों ने इतना शोर मचाया,
दादी हो गई बहरी।

***

गुरुवार, 25 जून 2009

बिल्ली-चूहा




आगे-आगे चूहा दौड़ा,

पीछे-पीछे बिल्ली।

भागे-भागे, दोनों भागे,

जा पहुँचे वो दिल्ली।




लाल किले पर पहुँच चूहे ने,

शोर मचाया झटपट।

पुलिस देखकर डर गई बिल्ली,

वापस भागी सरपट।

सोमवार, 22 जून 2009

मेंढक नाचे ता-ता-थैया


श्याम सुन्दर अग्रवाल


उमड़-घुमड़ कर आए बादल
छाई घटा घनघोर ।
हर्षाये सब पशु और पक्षी,
जंगल में नाचा मोर ।


रिमझिम-रिमझिम वर्षा आई,
नन्नू-मन्नू सब को भाई ।
नाच उठी नन्ही गुड़िया भी,
वह तो मींह में खूब नहाई ।

तपती धरती शीतल हो गई,
मिला खेत को पानी ।
सूख रहे थे पेड़ और पौधे,
उन्हें मिली नई जिंदगानी ।

जी भर कर जब बरसे बादल,
भर गए सूखे ताल-तलैया ।
कोयल और पपीहा गाएं,
मेंढक नाचे ता-ता-थैया ।
-0-

रविवार, 21 जून 2009

तितली



तितली बाई, तितली बाई,
कहाँ से इतने रंग हो लाई?
ले चलो मुझको अपने संग,
दिलवा दो थोड़े से रंग।


इंद्रधनुष तक जाती हूँ,
रंग वहीं से लाती हूँ।
तुम तो उड़ नहीं पाओगे,
कैसे वहाँ तक जाओगे?

शुक्रवार, 19 जून 2009

मौसी चली अमरीका




पासपोर्ट पा मौसी बोली,

मैं अमरीका जाऊँगी।

कालों से मन भर गया,

अब गोरे चूहे खाऊँगी।

गुरुवार, 18 जून 2009

बिल्ली हुई बीमार





गला-सड़ा-सा भोजन खाकर,
बिल्ली हुई बीमार।
डाक्टर के जाना पड़ा,
और लगे इजैक्शन चार।

मंगलवार, 16 जून 2009

घड़ी




टिक-टिक करती चले घड़ी,
बिना पांव के खड़ी-खड़ी।
अके नहीं, ये थके नहीं,
चाहे दीवार पर रहे चढ़ी।
***

शुक्रवार, 12 जून 2009

कुकड़ू-कूँ







चिड़िया
करती चीं-चीं-चीं,

करे कबूतर गुटरु-गूँ

सुबह-सवेरे हमें जगाता,

बोल के मुर्गा कुकड़ू-कूँ

बुधवार, 10 जून 2009

चल मुन्ना…



चल मुन्ना तुझे सैर कराऊँ,
बगिया में तितली दिखलाऊँ।
रात में देखेंगे हम तारे,
चंदामामा बड़े ही प्यारे।

मंगलवार, 9 जून 2009

उडान






पापा मुझको ला दो राकेट,
बैठ गगन में जाऊँगी
पकड़ चाँद को कान से,
धरती पर ले आऊँगी

सोमवार, 8 जून 2009

बिल्ली बोली…




बिल्ली बोली म्याऊँ,
मैं चूहे को खाऊँ।
चूहा बोला, भाग जा,
नहीं मैं पकड़ा जाऊँ।

शुक्रवार, 5 जून 2009

फल चोरी का


श्याम सुन्दर अग्रवाल

जब से चिंकी बंदर ने गरम-गरम जलेबियां बना कर बेचनी शुरू कीं, सुंदरवन में उसकी दुकान खूब चल निकली। चिंकी की बनाई हुई जलेबियां स्वादिष्ट भी बहुत होती हैं। सभी जानवर जलेबियों की तारीफ करते नहीं थकते। चिंकी बंदर है भी बहुत ईमानदार। छोटे से बड़े तक सबको एक जैसा माल देता है, ठीक तौल कर देता है। तभी तो उसकी दुकान पर सुबह से शाम तक ग्राहकों की भीड़ लगी रहती है।

सुंदरवन में कालू नाम का एक चूहा भी रहता था कालू को भी जलेबियां बहुत स्वाद लगती थीं। वह जब भी चिंकी की दुकान के सामने से गुजरता तो गरम व रसीली जलेबियां देख उसके मुँह में पानी आ जाता। कालू को अपने माता-पिता से इतने पैसे नहीं मिलते थे कि वह रोज पेट भर जलेबियां खा सके। वैसे भी उसके माता-पिता नहीं चाहते थे कि वह अधिक जलेबियां खाये। अधिक मिठाई खाने से सेहत जो खराब हो जाती है।

एक दिन कालू का दोस्त रमलू चिंकी की दुकान से जलेबियां लेने जा रहा था। कालू भी उसके साथ हो लिया। जब चिंकी रमलू को जलेबियां दे रहा था तो कालू ने चुपके से एक जलेबी खिसका ली। चिंकी को इसका पता नहीं चला। चोरी की वह जलेबी तो कालू को ओर भी स्वाद लगी।

फिर तो कालू का यह रोज का काम ही हो गया। जब भी उसका कोई मित्र चिंकी की दुकान पर जलेबियां खरीदने जाता तो वह भी उसके साथ हो लेता। कालू अपने साथ एक लिफाफा भी ले जाता। जब चिंकी जलेबियां तौलने में लगा होता तो कालू आँख बचा कर दो-तीन जलेबियां अपने लिफाफे में डाल लेता। काम में व्यस्त होने के कारण चिंकी उसे देख नहीं पाता।

कालू के मित्र उसे बहुत समझाते कि चोरी का फल अच्छा नहीं होता। परंतु कालू पर उनकी बात का कुछ असर न होता। वह हँस कर कहता, तुम क्या जानो चोरी की जलेबी का स्वाद! चोरी की जलेबी तो बहुत मीठी होती है। कभी चोरी की जलेबी खा कर तो देखो।

एक दिन सुबह-सुबह ही कालू का मन जलेबी खाने को करने लगा। उसने अपना लिफाफा लिया और कालू की दुकान की तरफ चल पड़ा।

उसके पहुँचने तक चिंकी ने नीम के वृक्ष तले अपनी दुकान सजा ली थी। वह गरम-गरम जलेबियां घी में से निकाल कर चाशनी की कड़ाही में डाल रहा था। कालू एक झाड़ी में छिपा, किसी ग्राहक के आने की प्रतीक्षा कर रहा था। वह सोच रहा था कि जब चिंकी का ध्यान ग्राहक की ओर होगा तब वह जलेबियां चुरा लेगा। उसने रंगू खरगोश को दुकान की तरफ जाते देखा तो वह भी छिपता-छिपाता दुकान पर पहुँच गया।

रंगू खरगोश ने चिंकी से जलेबियां माँगी तो उसमे गरम चाशनी में डूबी जलेबियां निकाल कर कड़ाही के ऊपर रखी झरनी पर रख दीं। कालू ने देखा कि चिंकी ने अभी तक बड़े थाल में एक भी जलेबी नहीं रखी थी। उसने जान लिया कि आज तो जलेबियां झरनी के ऊपर से ही चुरानी पड़ेंगी। अगले ग्राहक के आने तक तो वह प्रतीक्षा नहीं कर पायेगा।

जैसे ही चिंकी जलेबियां लिफाफे में डाल कर तौलने लगा, कालू जल्दी से कड़ाही पर रखी बड़ी झरनी पर पहुँच गया। जलेबियां बहुत गरम थीं, इसलिए उन्हें खिसकाने में कालू को तकलीफ हो रही थी। तभी चिंकी ने एक और जलेबी लेने के लिए हाथ झरनी की ओर बढ़ाया, तो उसकी निगाह कालू पर पड़ गई। कालू हड़बड़ा गया और अपने लिफाफे समेत गरम चाशनी में जा गिरा।

गरम चाशनी में डुबकियां लगाते कालू को चिंकी ने चिमटे से पकड़ कर बाहर निकाला। फिर उसने कालू को गरम पानी से नहलाया। नहाते समय कालू बुरी तरह से घबराया हुआ था और थरथर काँप रहा था।

चिंकी ने सोचा, अगर कालू को उचित दंड नहीं दिया गया तो उसकी चोरी की आदत नहीं छूटेगी। इसलिए उसने नीम के पेड़ की एक पतली शाखा से कालू की पूंछ बाँध कर उसे धूप में सूखने के लिए लटका दिया।

चिंकी की दुकान पर आने वालों की नज़र ऊपर लटके कालू पर पड़ती। वे हैरान होकर चिंकी से पूछते, नीम के पेड़ पर इतना बड़ा फल कैसा लटक रहा है?

चिंकी कहता, यह नीम का फल नहीं, चोरी का फल है। फिर वह सबको कालू की करतूत के बारे में बताता।

चिंकी की बात सुन सभी जानवर खूब हँसते। कालू तो शर्म के मारे चुपचाप आँखें बंद करके लटका रहा। शाम को जब चिंकी ने कालू को नीचे उतारा तो उसने कान पकड़ कर फिर कभी भी चोरी न करने का वचन दिया।

चिंकी ने उससे कहा, चोरी करने की जगह फालतू समय में मेरे पास आकर काम किया करो। काम के बदले तुम्हें खाने को जलेबियां मिल जाया करेंगी।

चिंकी की बात कालू ने स्वीकार कर ली। कभी-कभी कालू के दोस्त उससे पूछते, चोरी का फल कितना मीठा होता है?

कालू उत्तर देता, चोरी का फल मीठा नहीं, बहुत कड़वा होता है।

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चंदा मामा



श्याम सुन्दर अग्रवाल
चंदा मामा बड़ा ही प्यारा,
गुड़िया का वह दोस्त न्यारा।
घर पर जा पहुँचे जब सूरज,
दूर करे थोड़ा अंधियारा ।
छत पर जाकर गुड़िया रानी,
रोज रात बतियाती
चमक रहे चंदा मामा को,
बातें बहुत सुनाती
पूर्णिमा के बाद चाँद को
जब घटते जाते देखा ।
गुड़िया के चेहरे पर फिर गई,
चिंता की इक रेखा ।
क्या बात है मित्र क्यों तुम,
दुबले होते जाते
दूध नहीं पीते हो या फिर,
भोजन नहीं चबा कर खाते।
मोटे-ताजे अच्छे लगते,
मुझको तुम गोल-मटोल।
दो बार तुम्हें दूध पिलाए,
मम्मी जी से देना बोल ।
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मंगलवार, 2 जून 2009

मोटू राम गये बारात




श्याम सुन्दर अग्रवाल

शादी का मिला निमंत्रण,

तो मोटू राम गये बारात ।

फल कोई उनको न जंचा,

और न ही दाल और भात ।

दो प्लेट जलेबी खाई,

और खाई रसमलाई ।

आइसक्रीम खूब छक गये,

और उड़ाई सभी मिठाई

दोना भरकर रबड़ी खा ली,

तो तन गया उनका पेट ।

दर्द से लगे जब एंठने,

तो धरती पर गये लेट ।

एम्बूलेंस में लेटकर,

वे पहुँचे अस्पताल ।

हफ्ता भर करनी पड़ी,

मोटू को भूख हड़ताल ।

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सोमवार, 1 जून 2009

नेकी का बदला


एक खाड़ी में एक भयानक घड़ियाल रहता था। खाड़ी के किनारे पर एक बड़ा-सा गड्ढा था। गड्ढा बहुत सुरक्षित था। घड़ियाल ने उस गड्ढे को ही अपना घर बनाया हुआ था। वहाँ पर वह आसानी से अपना शिकार ढूँढ़ लेता था।
एक बार ऐसा हुआ कि खाड़ी में पानी कम हो गया। पानी किनारे से बहुत पीछे हट गया। घड़ियाल को पता ही न चला कि उसका घर खाड़ी से दूर हो गया है। जब गड्ढे का पानी सूख गया तो वह अपनी जान बचाने का उपाय सोचने लगा।
एक दिन गाँव का एक लड़का सूखी लकड़ियां चुनता हुआ वहाँ से गुजर रहा था। घड़ियाल को देख कर लड़का हँसा और बोला, “तुम यहाँ कैसे आ गये?”
घड़ियाल बोला, “मैं राह भटक कर यहाँ आ गया। कृपा कर मुझे खाड़ी के पानी तक पहुँचा दो। तुम्हारा भला होगा।”
लड़के को उस पर दया आ गयी। उसने घड़ियाल को अपनी चटाई में लपेटा और उठा कर पानी की तरफ चल पड़ा। पानी तक पहुँच कर लड़के ने उसे उतारना चाहा तो वह बोला, “मुझे गहरे पानी तक ले चलो।” जब पानी कंधों तक आ गया तो उसने कहा, “हाँ यह जगह ठीक है, मुझे यहाँ उतार दो।”
लड़के ने घड़ियाल को वहाँ पानी में उतार दिया। पानी में पहुँचते ही घड़ियाल के तेवर बदल गये। उसने वापस लौट रहे लड़के को पकड़ लिया और बोला, “मैं बहुत दिनों से भूखा हूँ। आज तो तुम्हें खा कर ही अपनी भूख मिटाऊँगा।”
लड़का बहुत हैरान हुआ। उसने कहा, “मैने तो तुम्हारी जान बचाई है। क्या तुम्हारे यहाँ नेकी का बदला बदी से दिया जाता है?”
“नेकी का बदला तो सदा बुरा ही होता है।” घड़ियाल बोला।
“तुम्हारा मुझे खाने की सोचना ही गलत है। नेकी का बदला तो सदा नेकी ही होता है।” लड़के ने कहा।
घड़ियाल ने कहा, “ऐसे करते हैं, हम तीन लोगों से पूछ लेते हैं। अगर तीनों मेरी बात से सहमत हुए तो मैं तुम्हें खा जाऊँगा।”
लड़के ने घड़ियाल का सुझाव स्वीकार कर लिया।
तभी एक बूढ़ी गाय किनारे पर पानी पीने आई। घड़ियाल गाय से बोला, “दादी माँ, तुम बुज़ुर्ग हो, समझदार हो। हमें बताओ कि नेकी का बदला नेकी होता है या बदी?”
“नेकी के बदले तो बुराई ही मिलती है।” गाय बोली, “अब मुझे ही देख लो, जब मैं जवान थी, बच्चे और खाद देती थी, तब तो मेरी सेवा होती थी। अब बुढ़ापा आया तो मुझे घर से निकाल दिया गया। किसी के साथ कितनी भी भलाई कर लो, बदले में तो बुराई ही मिलती है।”
थोड़ी देर बाद वहाँ एक बूढ़ा घोड़ा पानी पीने आया। घड़ियाल ने उससे भी वही सवाल किया। घोड़ा भी बोला, “नेकी का बदला कभी नेकी से नहीं मिलता। मुझे देख लो। एक समय था, जब मुझे युद्ध में ले जाया जाता था। मैने अनेक राजाओं की जान बचाई। तब मैं शाही अस्तबल में रहता था। बहुत से नौकर-चाकर मेरे आगे-पीछे घूमा करते थे। अब मैं बूढ़ा हो गया हूँ तो मुझे कोई घास भी खाने को नहीं देता। नेकी का बदला यह मिला कि मैं दर-दर भटक रहा हूँ।”
घड़ियाल बोला, “दो तो मेरी बात से सहमत हो गये, तीसरा भी ऐसा ही कहेगा।”
“ठीक है,” लड़का बोला, “अगर तीसरे ने भी यही कहा तो तुम मुझे खा लेना।”
तभी एक खरगोश घूमता हुआ वहाँ आ गया। घड़ियाल उससे बोला, “मेरे आदरणीय चाचा जी! आपने जमाना देखा है, आप इस लड़के को समझाएं कि नेकी का बदला सदा बदी ही होता है।”
खरगोश आश्चर्य में डूब कर बोला, “पहले मुझे सारी बात विस्तार से बताओ।”
घड़ियाल और लड़के ने मिल कर उसे सारी बात बताई। खरगोश ने चौंक कर अपने कान झटके, “लड़का तुम्हें वहाँ से उठा कर यहाँ तक लाया है?”
“हाँ, मैं इसे उठाकर लाया हूँ।” लड़का बोला।
“विश्वास करो,” घड़ियाल ने कहा, “यह लड़का ही मुझे उठा कर यहाँ लाया है।”
“मुझे तो विश्वास नहीं होता। लड़के, इसे वैसे ही फिर उठा कर दिखाओ।”
लड़के ने घड़ियाल को चटाई में लपेटा और उठा लिया।
“अब तुम्हें विश्वास आ गया?” घड़ियाल बोला।
“उठा लेना कोई बड़ी बात नहीं है, लेकिन यह तुम्हें उठा कर इतनी दूर से ला सकता है, मुझे नहीं लगता।” खरगोश बोला।
“हाँ, यही मुझे सिर पर उठा कर इतनी दूर लाया भी है।” घड़ियाल ने कहा।
“तो फिर यह तुम्हें वहाँ तक लेजाकर दिखाए।”
लड़का घड़ियाल को सिर पर उठा कर वापस उसी गड्ढे तक ले गया।
“अब तो तुम्हें पूरा विश्वास हो गया।” घड़ियाल ने खरगोश से कहा।
“हाँ, अब तो विश्वास हो गया।” खरगोश बोला। फिर उसने लड़के से कहा, “इस शैतान को अपने घर ले जाओ और पका कर सारे परिवार को खिला दो। जो नेकी का बदला बुराई से देना चाहे, उसके साथ ऐसा ही व्यवहार होना चाहिए।”
लड़का घड़ियाल को उठा कर अपने घर ले गया।
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सूरज दादा रहम करो


श्याम सुन्दर अग्रवाल
सूरज दादा रहम करो,
गरमी को कुछ कम करो।
सुबह सवेरे आते हो,
बहुत देर से जाते हो।
इतना न तुम काम करो,
थोड़ा तो आराम करो।
धरती खूब तपाते हो,
बच्चों को झुलसाते हो।
खूब पसीना आता है,
काम नहीं हो पाता है।
न ही पाते हैं हम खेल,
घर में ही बन गई है जेल।
पंखा, कूलर, ठंडा पानी,
देते है थोड़ी ज़िंदगानी।
चली जाए जब बिजली रानी,
सबको याद आती है नानी।
लू ने किया हाल-बेहाल,
सूख गए सब पोखर-ताल।
नहीं मिलता पीने को पानी,
सुस्त हो गई चिड़िया रानी।
बच्चों से थोड़ा प्यार करो,
छुट्टियां न बेकार करो।
विनती है तुम सेंक घटाओ,
चंदा-मामा से बन जाओ।
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